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________________ ॥ प्रस्तावना ॥ जैन जाति में ऐसा कोई मनुष्य न होगा जो श्रीकुन्दकुन्दस्वामी का पवित्र नाम न जानता हा क्योंकि शास्त्र सभा में प्रथम ही जो मङ्गलाचरण किया जाता है उम में श्रीकुन्दकुन्दस्वामी का नाम अवश्य आता है । श्रीकुन्दकुन्दस्वामी के रचे हुए अनेक पाहुड़ ग्रन्थ हैं जिन में अष्ट पाहड़ और घट पाहुड़ अधिक प्रसिद्ध हैं क्योंकि उन की भाषा टीका हो चुकी है। इस समय हम षट पाहुड़ ही प्रकाश करते हैं और दो पाहुड़ अलहदा प्रकाश करने का इरादा रखते हैं ओ षट पाहुड़ के माथ मिला देने से अष्ट पाहुड़ हो जाते हैं प्राकृत और संस्कृत के एक जैन विद्वान द्वारा प्राकृत गाथाओं की संस्कृत छाया और हिन्दी अनुवाद कराया गया है, अनुवादक महाशय नाम के भूखे नहीं है वरण जैन धर्म के प्रकाशित होने क अभिलाषी हैं इस कारण उन्हा ने अपना नाम छपाना जरूरी नहीं समझा है- ऐसे बिद्वान की सहायता के विदून प्राकृत गाथाओं का शुद्ध होना तो बहुत ही कठिन था क्योंकि मंदिरों में जो ग्रन्थ मिलत हैं उनमें प्राकृत वा संस्कृत मूल श्लोक तो अत्यंत ही अशुद्ध होते है-प्राकृत भाषा का अभाव होजाने के कारण संस्कृत छाया का साथ में लगादेना अति लाभकारी समझा गया है-आशा है कि पाठकगण अनुबादक के इस श्रमकी कदर करेंगे। सूरजभानु वकील देवबन्द
SR No.010453
Book TitleShat Pahuda Grantha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Siddhant Pracharak Mandali Devvand
PublisherJain Siddhant Pracharak Mandali Devvand
Publication Year
Total Pages149
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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