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________________ अर्थ-~तत्काल के जन्मे हुवे बालक के समान निर्विकार चेष्टा कायोत्सर्ग वा पद्मासन ध्यान, किमी प्रकार के हथियार का न होना शान्तिता, और दूसरों की बनाई हुई वासतिका (धर्म शाला आदिक) में निवास करना, ऐसी प्रवज्या कही है। उवसम खप दम जुत्ता, सरीर सत्कार वजिया रूखा । मयराय दोस रहिया पन्चज्जा एरिसा भणिया ॥५२॥ उपशम क्षमादम युक्ता शरीर सत्कार वर्जिता रुक्षा । मद राग द्वेष रहिता प्रव्रज्या ईदृशी भणिता ।। अर्थ-जो उपसम, क्षमा, दम अर्थात इन्द्रियों को जीतना इन कर युक्त शरीर के संस्कारो अर्थात स्नानादि से रहित, रुक्ष अर्थात नैलादिक के न लगाने से शरीर में रूखापन, मद, राग द्वष न होना ऐसी प्रत्रज्या जिनन्द्र देव ने कही है। वियरीय मूढ भावा पण? कम्मट्ट मिछत्ता । सम्मत्त गुण विमुद्धा पव्वज्जा एरिसा भणिया ॥२३॥ विपरीत मूढ भावा प्रणष्ट कर्माप्टा नष्ट मिथ्यात्वा । सम्यक्त्व गुण विशुद्धः प्रत्रज्या ईदृशी भणिता ।। अर्थ- मूढ ( अज्ञान ) भाव न होना जिससे आटों कर्म नष्ट होते हैं, । मिथ्यात्व का न होना जो सम्यक्त्व गुण सं विशुद्ध है एसी प्रत्रज्या अहंन्न भगवान ने कही है। जिणमगे पयजा छहमंधणये मुभणियणिग्गंथा। भावति भव्य पुरुसा कम्पक्खय कारणे भणिया ॥५४॥ जिनमार्गे प्रव्रज्या पट संहननेषु भणिता निग्रन्था । भावयन्ति भव्य पुरुषा कर्म क्षय कारणे भणिता ॥ अर्थ-वह निर्ग्रन्थ प्रव्रज्या जैन शास्त्र विशेछ हो महननों में कही है जिसका भव्य पुरुष ही धारण करते हैं जोकि कर्मों के क्षय करने में निमित्त भूत कही है।
SR No.010453
Book TitleShat Pahuda Grantha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Siddhant Pracharak Mandali Devvand
PublisherJain Siddhant Pracharak Mandali Devvand
Publication Year
Total Pages149
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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