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________________ ( ४७ ) दसपाणपज्जती असहस्सा लक्खणाभणिया । गोखीर संखधवलं मांसरुहिरं च सव्ंगे || ३८ ॥ दश प्राणाः पर्याप्तयः अष्टसहश्रं च लक्षणानां भणितम् । गोक्षीरसंखधवलं मांसं रुधिरं च सर्वाङ्गे ।। अर्थ - अर्हन्तदव के द्रव्य अपेक्षा दश प्राण हैं षटपर्याप्ति आठ अधिक एक हजार १००८ लक्षण हैं और जिनके समस्त शरीर में जो मांस और रुधिर है वह दुग्ध और शंख के समान सुफेद है । एरिस गुणेहिं सव्वं अइसयवं तं सुपरिमलामोयं । ओरालियं च काओ णायव्वं अरुह पुरुसस्स ॥ ३९ ॥ इदृशगुणैः सर्व. अतिशयवान् सुपरिमलामोदः । औदारिकश्च कायः ज्ञातव्यः अर्हत्पुरुषस्य || अर्थ - एसे गुणांकर महित समस्तही देह अतिशयवान और अत्यन्त सुगन्धिकर सुगन्धित है ऐसा परमौदारिक शरोर अर्हन्त पुरुषका जानना । मयरायदोसरहिओ कसायमल वज्जओयसुविसृद्धो । चित्तपरिणामरहिदो केवलभावेमुणयन्त्रो ॥ ४० ॥ मदरागदोपरहितः कषायमलवर्जितः सुविशुद्धः । चित्तपरिणामरहितः केवलभाव ज्ञातव्यः ॥ अर्थ - केवल ज्ञानरूप एक क्षायिकभावक होने पर अर्हन्तदेव मद राग द्वेष से रहित कपाय और मलसे वर्जित शान्तिमूर्ति और मनके व्यापार से रहित होते है । सम्मइ दंसण पस्सइ जाणदि णाणेण दव्वपज्जाया । सम्पत्तगुणविसुद्ध भावोअरहरूसणायव्वो || ४१ ॥ सम्यग्दर्शनेन पश्यति, जानाति ज्ञानेन द्रव्यपर्यायान् । सम्यक्त्वगुण विशुद्धः भावः अर्हतः ज्ञातव्यः ॥
SR No.010453
Book TitleShat Pahuda Grantha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Siddhant Pracharak Mandali Devvand
PublisherJain Siddhant Pracharak Mandali Devvand
Publication Year
Total Pages149
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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