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________________ ( ३६ ) जिनबिम्ब ५ जिनमुद्रा ६ आन्मार्थ ज्ञान ७ अर्हन्त देव कथित देव ८ तीर्थ ९ अर्हन्त स्वरूप १० गुणों कर शुद्ध साधू ११ इनका स्वरूप यथा क्रम वर्णन करते हैं तिसको चिन्तवन करो। मण वयण काय दव्वा आयत्ता जस्म इंन्दिया विसया। आयदणं जिणमग्गे णिद्दिढ सञ्जयं हवं ॥५॥ मनो वचन काय द्रव्याणि आयत्ता यम्य ऐन्द्रिया विषयाः । आयतनं जिनमार्गे निर्दिष्टं सायन्तं रूपम् ॥ अर्थ-मन वचन काय तथा पांचों इन्द्रियों के विषय जिसके आधीन है तिस संयमी के रूप ( शरीर ) को जैनशास्त्र में आयतन कहत हैं । अर्थात जिसने इन्द्रिय मन वचन काय को अपने वश में कर लिया है उस संयमी मुनि का देह आयतन है। मय राय दोस मोहो कोहो लोहो य जस्स आयत्ता। पञ्चमहव्यधारी आयदणंमहरिसी भणियं ॥ ६ ॥ मदो रागो द्वेषो मोहः क्रोधो लोभश्च यस्य आयत्ता । पञ्चमहाबतधरा आयतनं मह ऋषय भणिताः ॥ अर्थ-जिनके मद, राग, द्वेष, मोह, क्रोध, लोभ, और माया नहीं है और पञ्च महाव्रतों के धारक हैं व महर्षि आयतन कहे मये हैं। सिद्धं जस्स सदच्छं विसुद्धझाणस्स गाण जुत्तस्स । सिद्धायदणं सिद्धं मुणिवर वसहस्स मुणिदच्छं ॥ ७॥ सिद्धं यस्य सदर्थ विशुद्ध ध्यानस्य ज्ञान युक्तस्य । सिद्धायतनं सिद्धं मुनिवर वृषमस्य ज्ञातार्पस्य ॥ अर्थ-जिसका शुद्धात्मा सिद्ध हो गया है जो विशुद्ध (शुक्ल) ध्यानी केवल ज्ञानी और मुनिवरी में प्रधान हैं ऐसे अर्हन्त को सिद्धायतन वर्णन किया गया है। बुद्धं जम्बोहन्तो अप्पाणं वेइयाइ अण्णं च । पञ्चमहव्वय मुद्धं णाणपयं जाण चदिहरं ॥ ८॥
SR No.010453
Book TitleShat Pahuda Grantha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Siddhant Pracharak Mandali Devvand
PublisherJain Siddhant Pracharak Mandali Devvand
Publication Year
Total Pages149
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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