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________________ ( १०६ ) मोहमयगारवेहिं यमुकाजे करुण भावसंजुत्ता। ते सचदुरियखंभ हणति चारित्तखग्गेण ॥१५९॥ मोहमदगारवैः च मुक्ताये करुणामावसंयुक्ताः । से सर्वदुरितस्तंभ धन्ति चारित्र खड्गेन ॥ अर्य-मोह अर्थात् पुत्र मित्र कलित्र धन आदि पर वस्तुओं में नेह करना । मद अर्थात् शान आदि के प्राप्त होने पर गर्व करना । गारव अर्थात् अपनी बड़ाई प्रकट करना, जो मुनिवर इन से अर्थात् मोह मद गारव मे रहित हैं और करुणा भाव सहित हैं वेही मुनि चारित्र रूपी खड्ग से समस्त पाप रूपी स्तम्भ को हने हैं। गुणगणमणिमालाए जिणपयगयणेणि सायरमुणिदो। तारावलि परि काले ओ पुण्णिम इंदुव्च पवणयहे ॥१६०॥ गुणगण मणि मालया जिनमत गगने निशाकर मुनीन्द्रः । तारावलि परिकलितः पूर्णिमन्दुरिव पवनपथे ।। अर्थ-जैसे आकाश में तारा नक्षत्रों से वेष्टित पूर्णमासी का चन्द्रमा शोभायमान होता है तैसे ही जिन शामन रुपी आकाश में गुण समूह अर्थात् २८ मूल गुण १० धर्म ३ गुप्ति ८४ लाख उत्तर गुण की मणिमाला से मुनीश्वर रुपी चन्द्रमा शोभायमान होते हैं। चकहर राम केसव सुरवर जिण गणहराई सौक्खाई । चारण मुणिरिद्धिओ विसुद्ध भावाणरा पत्ता ॥१६॥ चक्रधरराम केशव सुरवर जिनगणधरादि सौख्वानि । चारण मणि ऋद्धी: विशुद्ध भावा नरा प्राप्ताः ॥ अर्थ- विशुद्ध भावों के धारक मुनिवर ही चक्रवर्ती, राम, वासुदेव, इन्द्र, अहमिन्द्र, अईन्त, गणधर, आदि उत्तम पदों के सुखों को तथा चारण मुनियों की ऋद्धि (आकाशगामिनी आदि ६४ ऋद्धि ) को प्राप्त हुव हैं। सिव मजरामरलिंग मणेवम मुत्तमपरम विमलमतुलं । पत्तावर सिद्धिमुहं जिण भावण भाविया जीवा ।।१६२॥
SR No.010453
Book TitleShat Pahuda Grantha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Siddhant Pracharak Mandali Devvand
PublisherJain Siddhant Pracharak Mandali Devvand
Publication Year
Total Pages149
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size5 MB
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