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________________ स्याद्वादमं. ॥ ४४ ॥ सत्तायोगस्तत्र । द्रव्यादीनां पुनस्त्रयाणां षट्पदार्थसाधारणं वस्तुस्वरूपमस्तित्वमपि विद्यते । अनुवृत्तिप्रत्ययहेतुः | सत्तासम्बन्धोऽप्यस्ति । निःस्वरूपे शशविषाणादौ सत्तायाः समवायाभावात् । (C इस प्रकार वैशेषिकोंके माने हुए पदार्थोंका निरूपण करके अब अक्षरोंका अर्थ प्रकट करते है । " सतामपि " "सत् ' है इस सत्ता प्रकारकी बुद्धिसे जानने योग्य होनेके कारण साधारण ऐसे भी छः पदार्थोंमेंसे “ कचिदेव " कितने ही पदार्थों में “ सामान्यका योग " स्यात् " है और सब पदार्थोंमे सत्ताका संबंध नहीं है । भावार्थ - वैशेषिक इस युक्तिसे कथन करते है कि, द्रव्य, गुण और कर्म इन तीनोंमें वह सत्ता है " इस वचनसे जहां सत्प्रत्यय होता है, वहां ही सत्ता रहती है, और सत्प्रत्यय द्रव्य, गुण, तथा कर्ममें ही है, इस कारण द्रव्य, गुण तथा कर्म इन तीनोंमें ही सत्ताका योग है और सामान्य, विशेष तथा समवाय नामक जो तीन पदार्थ हैं उनमें सत्ताका योग नहीं है । क्योंकि इन सामान्यादि तीन पदार्थों में सत्प्रत्ययका अभाव है । भावार्थइस कथनका यह है कि, यद्यपि वस्तुका स्वरूपभूत जो अस्तित्व धर्म है, वह सामान्य आदि तीन पदार्थोंमें भी रहता है, तथापि वह सामान्य आदि तीन पदार्थों में रहनेवाला अस्तित्व अनुवृत्तिप्रत्ययका कारण नहीं है । और जो अनुवृत्तिप्रत्यय है, उसीको सत्प्रत्यय कहते हैं, उस सत्प्रत्ययका सामान्य आदि तीन पदार्थोंमें अभाव है, इस कारण उन सामान्य आदिमें सत्ताका योग भी नहीं है । और द्रव्य, गुण, कर्म, इन तीनों पदार्थों में तो छः पदार्थोंमें साधारण ( समानरूपसे रहनेवाला ) वस्तुका खरूपभूत जो वह भी है । अर्थात् द्रव्य, गुण अस्तित्व है, वह भी रहता है और अनुवृत्तिप्रत्ययका कारणरूप जो सत्ताका योग ( संबंध ) | और कर्म इनमें सत्ताका योग ही नहीं है, किन्तु अस्तित्व भी है। क्योंकि यदि इनमें अस्तित्व न होवे तो जैसे अस्तित्वरूप खरूपसे रहित शशविषाण ( सुस्सेके सींग) आदिमें सत्ताका संबंध नही है, इसी प्रकार इनमें भी सत्ताके समवायका अभाव हो जावे इस कारण द्रव्य, गुण और कर्म, इन तीनोंमें अस्तित्व और सत्ताका योग ये दोनों रहते है । י - सामान्यादित्रिके कथं नानुवृत्तिप्रत्यय इति चेद्वाधकसद्भावादिति ब्रूमः । तथाहि -सत्तायामपि सत्तायोगाङ्गीकारेऽनवस्था । विशेषेषु पुनस्तदभ्युपगमे व्यावृत्तिहेतुत्वलक्षणतत्स्वरूपहानिः । समवाये तु तत्कल्पनायां सम्वन्धाऽभावः । केन हि सम्बन्धेन तत्र सत्ता सम्बध्यते । समवायान्तराऽभावात् । तथा च प्रामाणिकप्रकाण्डमुदयनः " व्य रा. जे. शा. ॥ ४४ ॥
SR No.010452
Book TitleRaichandra Jain Shastra Mala Syadwad Manjiri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParamshrut Prabhavak Mandal
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1910
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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