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________________ राजै.शा. स्थाद्वादमं. | इस प्रकार इन समस्त पूर्वपक्षोंको (वादियोंकी शंकाओंको) और उन वादियोंकी शंकाओंके जो ऊपरमें समाधान कर चुके है, Vउनको चित्तमें धारण करके सिद्धान्तवादी आचार्यमहाराज कहते है कि, वैशेषिकोंने जो समवायमें समवाय है, उसको गौण कहकर । ॥४०॥ धर्मधर्मीके समवायसे समवायके समवायमें भेद कहा है सो नहीं है । क्योंकि गौणका जो लक्षण है, वह समवायमें नहीं सिद्ध होता है । और गौणका लक्षण इस प्रकार कहते है “ अव्यभिचारी, अविकल, असाधारण, और अंतरंग ऐसा जो अर्थ जा है, वह तो मुख्य है, और उससे विपरीत अर्थात् व्यभिचारी, विकल, साधारण तथा बहिरग अर्थ गौण है. इसकारण मुख्य | अर्थके विद्यमान होने पर गौण अर्थमें वुद्धि कैसे होवे ॥१॥" किञ्च योऽयमिह तन्तुषु पट इत्यादिप्रत्ययात्समवायसाधनमनोरथः स खल्वनुहरते नपुंसकादपत्यप्रसवमनो त्पांशुलपादानामपि इह पटे तन्तव इत्येवं प्रतीतिदर्शनात ।। इह भूतले घटाभाव इत्यत्रापि समवायप्रसङ्गात् । अत एवाह । अपि चलोकवाध इति। अपिचेति दूपणाभ्युच्चये। लोकः प्रामाणिकलोकः सामान्यलोकश्च तेन वाधो विरोधो लोकबाधस्तदप्रतीतव्यवहारसाधनात् । वाधशब्दस्य “ईहाद्याः प्रत्ययभेदतः” इति पुंस्त्रीलिङ्गता)। तस्माद्धर्मधर्मिणोरविष्वग्भावलक्षण एव सम्बन्धः प्रतिपत्तव्यो नान्यः समवायात् । इति काव्यार्थः॥७॥ | और भी विशेष दोष यह है कि, तुम्हारा जो यह " इन तंतुओंमें पट है' इत्यादिरूप इहप्रत्ययसे समवायको सिद्ध करनेका मनोरथ है, वह नपुसकसे पुत्र उत्पन्न करनेके मनोरथके समान है । भावार्थ-जैसे नपुंसकसे कभी पुत्र उत्पन्न नहीं होता है, इसी प्रकार इस इहप्रत्ययसे भी समवाय सिद्ध नहीं होता है। क्योंकि इन तंतुओंमें पट है, इत्यादि व्यवहार लोकसे विरुद्ध है। कारण कि जो पांशुलपाद (धूलिके धारक चरणोंवाले ) अर्थात् गांवके लोग है, उनके भी इस पटमें ततु है, ऐसी ही प्रतीति देखी जाती नाहै। और इन तंतुओंमें पट है ऐसी प्रतीति नहीं देखते है। भावार्थ-ग्रामवासी मूर्ख लोग भी पटमें तंतु है, ऐसा मानते है।। ॐ विद्वानोंका तो कहना ही क्या ? और तुम इन तंतुओमें पट है, ऐसा लोकविरुद्ध मत खीकार करके उससे समवायको सिद्ध करते ॥४०॥
SR No.010452
Book TitleRaichandra Jain Shastra Mala Syadwad Manjiri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParamshrut Prabhavak Mandal
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1910
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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