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________________ स्याद्वादमं. ॥ ३ ॥ तथा पीछेसे निराकरण भी बहुत ही उत्तम रीति से किया है। इसमें किन किन विषयोंका प्रण है यह बात आगे लिखी हुई विषयसूचीसे मालुम पड़ सकती है । इस ग्रन्थका हिन्दीभाषा में अनुवाद तथा संशोधन प्रारंभमे पृष्ट १०८ तक तो जयपुरनिवासी पं० जवाहिरलालजी माहित्यशास्त्रीके द्वारा हुआ परंतु कई कारणवश जब पण्डितजी साहब यहां नहीं रह सके तब बाकीका अनुवाद तथा संशोधन मैने किया । यह अनुवाद जो मैने किया है सो मेरा पहिला ही कार्य है तथा हिन्दी भाषा मेरी मातृभाषा होनेपर भी साहित्य विषयमं जितना परिचय चाहिये उतना मुझे परिचय नहीं है इसलिये मूल होना बहुधा संभव है परंतु अधूरे कार्यको पूर्ण कर देना कर्तव्य समझकर मै इसमें प्रवृत्त हुआ इसलिये विद्वान् मनुष्य मेरी त्रुटियों को अविवक्षित नयाँ के समान उदासीनतासे देखते हुए इस ग्रन्थका लाभ उठाने में मुख्यतासे ध्यान लगावें ऐसी मेरी प्रार्थना है । इसके कर्ता यद्यपि श्वेताम्बर सम्प्रदाय के आचार्य है परंतु इसमें ऐसा एक भी विषय नहीं है जो किसी एक ही जैन सपायको मान्य हो । इसलिये आशा है कि इसका आदर दोनो सम्प्रदायोंमें एकसा ही होगा । विद्वानोंका अनुरागी, वंशीधर गुप्त. له ای شما دی मृचना ॥३॥
SR No.010452
Book TitleRaichandra Jain Shastra Mala Syadwad Manjiri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParamshrut Prabhavak Mandal
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1910
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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