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________________ स्थाद्वादम. ॥२१॥ अब कदाचित् वादी कहै कि-संतानकी अपेक्षासे पूर्व और उत्तर क्षणों में क्रम हो सकता है अर्थात् प्रथम क्षणमें रहनेवाले पदा-बारा जै.शा., र्थका संतान दूसरे क्षणमें रहता है, इसलिये पूर्वक्षणके और उत्तरक्षणके क्रम हो सकता है । तो यह कहना ठीक नहीं । क्योंकि, संतान पदार्थ नहीं है । और जो कदाचित् संतानको पदार्थ मान भी लिया जावे, तो हम पूछते है कि, वह संतान क्षणिक है N] अथवा अक्षणिक (नित्य ) है ? यदि क्षणिक कहो तब तो संतानमें पदाथोंसे कोई विशेष (भेद) न हुआ अर्थात् जैसे | पदार्थ क्षणिक है, उसी प्रकार संतान भी क्षणिक हुआ तो जैसे क्षणिक होनेसे पदार्थमें कम नहीं होता है, वैसे ही संतानमें भी क्रम नहीं होगा। और यदि कहो कि, संतान अक्षणिक है, तो तुम्हारा क्षणभङ्गवाद समाप्त हुआ अर्थात् संतान पदार्थको तुमनें भी नित्य मान ही लिया । नाप्यक्रमेणार्थक्रिया क्षणिके सम्भवति । सोको बीजपूरादिक्षणो युगपदनेकान् रसादिक्षणान् जनयन् एकेन स्वभावेन जनयेत्, नानास्वभावैर्वा । यद्येकेन तदा तेषां रसादिक्षणानामेकत्वं स्यात् । एकस्वभावजन्यत्वात् । अथी नानास्वभावैर्जनयति, किश्चिद्रूपादिकमुपादानभावेन, किंचिद्रसादिकं सहकारित्वेन, इति चेत्-तर्हि ते स्वभावास्त| स्याऽत्मभूता अनात्मभूता वा। अनात्मभूताश्चेत्स्वभावत्वहानिः । यद्यात्मभूतास्तहि तस्यानेकत्वम् । अनेकस्वभा वत्वात् । स्वभावानां वा एकत्वं प्रसज्येत । तदव्यतिरिक्तत्वात्तेषां, तस्य चैकत्वात् । __ और क्षणिकपदार्थमें अक्रमसे भी अर्थक्रिया नहीं हो सकती है। क्योंकि, वह एक बीजपूर (विजोरा ) रूप पदार्थ एक ही समयमें अनेक रस आदि पदार्थोंको जो उत्पन्न करता है, सो एक खभावसे करता है ? वा अनेक खभावोंसे करता है ? यदि कहो कि, एक खभावसे उत्पन्न करता है, तब तो एक खभावसे उत्पन्न होनेके कारण उन रस आदि पदार्थोंके एकता हो जावेगी। अर्थात् बीजपूर जिस खभावसे रस पदार्थको उत्पन्न करता है, उसी खभावसे यदि रूप, गन्ध, स्पर्श आदि पदार्थोंको भी उत्पन्न करैगा, तो रूप, रस, गन्ध आदि सब पदार्थ एक हो जावैगे। क्योंकि वे सब एक खभावसे उत्पन्न हुए हैं वौद्धमतमें 'क्षण' शब्दसे की पदार्थका ग्रहण है और यह इसका धर्म (गुण) है, यह इसका धर्मी (गुणी ) है, ऐसा नहीं माना गया है। इसलिये जैसे वीजपूर | पदार्थ है, वैसे ही रूप रस आदि भी पदार्थ है। ] अब यदि कहो कि, वह बीजपूर पदार्थ रस आदिको अनेक खभावोंसे उत्पन्न १ बौद्धमते क्षणशब्देन पदार्थसंज्ञा क्षणिकरवारक्षणः ॥ २१
SR No.010452
Book TitleRaichandra Jain Shastra Mala Syadwad Manjiri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParamshrut Prabhavak Mandal
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1910
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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