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________________ स्साद्वाद. ऐसा जो एकदेशरूप वस्तुका एक धर्म है उसको जो वाक्य भेदभावकी अथवा भेदरूप उपचार की प्रधानता लेकर प्रतिपादन करै वह विकलादेश है । इसीको नयवाक्य भी कहते हैं । इस प्रकार सकलादेश तथा विकलादेश सिद्ध होनेसे यह कहना भी सिद्ध ॥१८३॥ होता है कि सकलादेश विकलादेशरूप आदेशोमेंसे कभी किसीका और कभी किसीका सहारा लेनेसे वस्तुके खरूपमें सात सात IAO) भंग होजाते हैं । इस प्रकार इस काव्यका अर्थ पूर्ण हुआ। ___अनन्तरं भगवद्दर्शितस्याऽनेकान्तात्मनो वस्तुनो वुधरूपवेद्यत्वमुक्तम् । अनेकान्तात्मकत्वं च सप्तभङ्गीप्ररूपणेन सुखोन्नेयं स्यादिति सापि निरूपिता । तस्यां च विरुद्धधर्माध्यासितं वस्तु पश्यन्त एकान्तवादिनोऽबुधरूपा विरोधमुद्भावयन्ति । तेषां प्रमाणमार्गाच्यवनमाह। ___अभी पहिले यह कहा कि जिसका प्रतिपादन भगवान् सर्वज्ञने किया ऐसा वस्तुका अनेकान्तात्मक खरूप अच्छे विद्वानोके विचारमें ही आसकता है । और अनेकांतात्मकपनेका ज्ञान सप्तभङ्गीरूप स्याद्वादका प्ररूपण करनेसे ही भलेप्रकार होसकता है क इसलिये पीछे से सप्तभङ्गीका निरूपण भी किया । परंतु नाना प्रकारके अस्तित्व नास्तित्व आदिक परस्परविरुद्ध धर्मोसहित वस्तुको देखते हुए अज्ञानी एकान्तपक्षपाती जन उसमें विरोध समझते हैं । सो अब यह दिखाते हैं कि वे प्रमाणके सच्चे - मार्गसे च्युत है। उपाधिभेदोपहितं विरुद्ध नार्थेष्वसत्त्वं सदवाच्यते च । इत्यप्रबुद्ध्यैव विरोधभीता जडास्तदेकान्तहताः पतन्ति ॥२४॥ मूलार्थ-परस्पर विरुद्ध जो अस्तित्व नास्तित्व तथा अवक्तव्य ये तीन धर्म पदार्थमें आरोपित किये गये हैं वे यद्यपि विवक्षाके 2 वश ठीक हैं इसलिये विरुद्ध नहीं हैं परंतु विवक्षाओंका विचार न करनेवाले तथा एकांतपक्षोंके धारण करनेसे जिनकी बुद्धि कुंठित होगई है तथा जो विरोधको देखकर भयभीत हैं ऐसे मूर्ख मनुष्य मार्गसे पतित होरहे हैं। व्याख्या-अर्थेषु पदार्थेषु चेतनाचेतनेष्वसत्त्वं नास्तित्वं न विरुद्धं न विरोधावरुद्धम् । अस्तित्वेन सह । ॥१८३॥
SR No.010452
Book TitleRaichandra Jain Shastra Mala Syadwad Manjiri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParamshrut Prabhavak Mandal
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1910
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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