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________________ न्याद्वादम. ॥८॥ अयं जनो नाथ तव स्तवाय गुणान्तरेभ्यः स्पृहयालुरेव । राजै.शा. विगाहतां किन्तु यथार्थवादमेकं परीक्षाविधिदुर्विदग्धः॥२॥ काव्यभावार्थः- हे नाथ ! परीक्षा करनेमें दुर्विदग्ध अर्थात् अपनेको पंडितके समान माननेवाला यह मैं (प्रत्यक्षीभूत हेमचंद्र नामक आचार्य) आपके अन्य गुणोंकी स्तुति करनेके अर्थ इच्छावान् ही हूं। परन्तु एक यथार्थवादनामक गुणको ही स्तुतिसे व्याप्त करता हूं ॥ २॥ __ व्याख्या । हे नाथ अयं मल्लक्षणो जनस्तव गुणान्तरेभ्यो यथार्थवादव्यतिरिक्तेभ्योऽनन्यसाधारणशारीरलक्षणादिभ्यः स्पृहयालुरेव श्रद्धालुरेव । किमर्थ स्तवाय स्तुतिकरणाय । इयं तादर्णं चतुर्थी पूर्वत्र तु स्पृहेयाप्यं वेति लक्षणा । तव गुणान्तराण्यपि स्तोतुं स्पृहावानयं जन इति भावः । ननु यदि गुणान्तरस्तुतावपि स्पृहयालुता तकिमर्थं तत्रोपेक्षेत्याशङ्कयोत्तरार्द्धमाह । किंत्वित्यभ्युपगमपूर्वकविशेषद्योतने निपातः । एकमेकमेव यथार्थवादं यथावस्थितवस्तुतत्त्वप्रख्यापनाख्यं त्वदीयं गुणमयं जनो विगाहतां स्तुतिक्रियया समन्ताद् व्याप्नोतु तस्मिन्नेकस्मिन्नपि हि गुणे वर्णिते तत्रान्तरीयदैवतेभ्यो वैशिष्टयख्यापनद्वारेण वस्तुतः सर्वगुणस्तवनसिद्धेः॥ व्याख्यार्थः-'नाथ' भो स्वामिन् ? 'अयं' यह 'जनः हेमचन्द्र नामक मनुष्य 'तव आपके गुणान्तरेभ्यः' | यथार्थवादसे भिन्न और अन्य देवोंमें नहीं रहनेवाले शरीरलक्षण आदि जो गुण है, उनको 'स्तवाय' स्तुतिगोचर करनेके अथे. KY अर्थात् स्तुतिमें लानेके लिये 'स्पृहयालु एव' अभिलाषा (इच्छा) का धारक ही है [ 'स्तवाय' यहां तादर्थ्यमें चतुर्थी विभक्ति है। 1 और 'गुणान्तरेभ्यः' यहांपर "स्पृहेाप्यं वा" इस सूत्रसे स्पृह धातुके कर्ममें विकल्पसे चतुर्थी विभक्ति है। भावार्थ-यह मै आपके ॥८ ॥ अन्य गुणोंकी स्तुति करनेके अर्थ भी इच्छा रखता ही हूं। 'जो अन्यगुणोंकी स्तुति करनेमें भी इच्छा है तो उन गुणोंकी स्तुति करनेमें । अनादर क्यों है ? । इसप्रकार आशका करके आचार्य उत्तरार्द्धको कहते है। किन्तु किन्तु ( वल्कि) [किन्तु यह स्वीकार किये १खपुस्तके- तरिकतान्यपि सोप्यति स उत नेत्याशंक्योत्तरार्द्धमाह । इति पाठ ।
SR No.010452
Book TitleRaichandra Jain Shastra Mala Syadwad Manjiri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParamshrut Prabhavak Mandal
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1910
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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