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________________ स्याद्वादमं. ॥१२५॥ 1 वेशरूपो विपर्ययः । ब्राह्मप्राजापत्यसौम्यैन्द्र गान्धर्वयक्षराक्षसपैशाच भेदादष्टविधो दैवः सर्गः । पशुमृगपक्षिसरीसृप| स्थावरभेदात् पञ्चविधस्तैर्यग्योनः । ब्राह्मणत्वाद्यवान्तरभेदाविवक्षया चैकविधो मानुषः । इति चतुर्दशधा भूतसर्गः । वाधिर्य कुण्ठताऽन्धत्वजडताऽजिघतामूकताकौण्यपङ्गुत्वक्लैव्योदावर्तमत्ततारूपैकादशेन्द्रियवधतुष्टिनवकविपर्ययसिद्ध्यष्टकविपर्ययलक्षणसप्तदशबुद्धिवधभेदादष्टाविंशतिविधा शक्तिः । प्रकृत्युपादानकालभोगाख्या अम्भःसलि| लौघवृष्ट्यऽपरपर्यायवाच्याश्चतस्र आध्यात्मिकाः । शब्दादिविषयोपरतयश्चार्जनरक्षणक्षयभोगहिंसादोषदर्शनहेतुजन्मानः पञ्च वाह्यास्तुष्टयः । ताश्च पारसुपारपारापारानुत्तमाम्भउत्तमाम्भः शब्दव्यपदेश्याः । इति नवधा तुष्टिः । त्रयो दुःखविघाता इति मुख्यास्तिस्रः सिद्धयः प्रमोदमुदितमोदमानाख्याः । तथाध्ययनं शब्द ऊहः सुहृत्प्राप्ति|र्दानमिति दुःखविघातोपायतया गौण्यः पञ्च तारसुतारतारताररम्यकसदामुदिताख्याः । इत्येवमष्टधा सिद्धिः । धृ|तिश्रद्धासुखविविदिषाविज्ञप्तिभेदात् पञ्च कर्मयोनयः । इत्यादीनां ” संवरप्रतिसंवरादीनां च तत्त्वकौमुदीगौडपाद - भाष्यादिप्रसिद्धानां विरुद्धत्वमुद्भावनीयम् । इति काव्यार्थः । इसी प्रकार सांख्यमतियोंकी और भी नीचे दिखाई गई कल्पनाओं में तथा तत्त्वकौमुदीके गौड़पाद भाष्य आदिक ग्रन्थों में प्रसिद्ध सवर प्रतिसवरादिक कल्पनाओंमे अनेक प्रकारका विरोध विचारलेना चाहिये । वे नीचे लिखी हुई कल्पनाऐं ये है । - तम, मोह, महामोह, तामिस्र तथा अधतामिस्र ऐसे पांच प्रकारका अविद्या, अस्मिता, राग, द्वेष तथा अभिनिवेश ( आग्रह ) नामक विपर्यय है । ब्रह्मलोक उत्पन्न होने, प्रजापतिलोकमें उत्पन्न होने तथा सौम्यलोकमें, इन्द्रलोकमें, गन्धर्वों के लोकमें तथा यक्ष, राक्षस, पिशाचोंके लोकमें उत्पन्न होनेकी अपेक्षा देवताओंकी सृष्टि आठ प्रकार है । पशु, मृग, पक्षी, सर्प तथा वृक्षादिक स्थावर ऐसी पाच प्रकार तिर्यचोकी सृष्टि है । ब्राह्मणादिक अंतर्गत भेदोंकी अपेक्षा न करनेसे मनुष्य एक प्रकार ही गिने है। इस प्रकार प्राणियोंकी उत्पत्ति सर्व चौदह प्रकारसे है । बहिरापन ( श्रोत्रका ), कुठता ( वचनकी), अधापन (नेत्रोंका ), जड़पना (स्पर्शने - न्द्रियका), गंधका ज्ञान न होना ( नासिकाका ), तोतलापन ( जिव्हाका ), लुलापन ( हाथका ) लंगडापन ( पैरोंका ), नपुंसकपना ( लिंगका ), कब्जियात ( गुदासंबंधी ) तथा उन्मत्तता ( मनकी ) यह ग्यारह प्रकारका इंद्रियोंका बध तथा नौ तुष्टियोंके | नौ प्रकार विपर्यय तथा आठ सिद्धियोंके आठ प्रकार विपर्यय ऐसे सत्रह प्रकारका बुद्धिका बध यह सर्व अट्ठाईस प्रकारकी शक्ति ॥१२५॥ रा. जै.शा.
SR No.010452
Book TitleRaichandra Jain Shastra Mala Syadwad Manjiri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParamshrut Prabhavak Mandal
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1910
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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