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________________ स्थाद्वादम. ॥९७॥ मनक अन्यपुत्रोंके समाहारका परिणाम जो छैन नहीं है, उनमें भी शशाक आदिका भक्षण अक अन्य पुत्र हैं, उन्नाह सोही , र प्रयोगमें शाक आनिहीं है, क्योंकि, जो अर्थात् उस गर्नस पुजाक, साधन ( हेतु ) अनुमानमें भी जडत्व में किसी परपदाथसे यू सत्यपि यदेव जडस्तम्भादि तदेव स्वस्मादन्येन प्रकाश्यते । स्वप्रकाशे परमुखप्रेक्षित्वं हि जडस्य लक्षणम् । न च रा .जै.शा. ॐ ज्ञानं जडस्वरूपम् । अतः साधनाव्यापकत्वं जडत्वस्य । साध्येन समव्याप्तिकत्वं चास्य स्पष्टमेव । जाड्यं विहाय स्वप्रकाशाभावस्य तं च त्यक्त्वा जाड्यस्य क्वचिदप्यदर्शनात् । इति । ___और जो तुमने अनुमानके प्रयोगमें ' ईश्वरके ज्ञानसे भिन्न हो कर प्रमेय है' ऐसा हेतु दिया है। वह अप्रयोजक है; क्योंकि, के यह हेतु उपाधिसहित है। भावार्थ-जो साधनमें तो अव्यापक हो और साध्य के साथ व्याप्त रहे उसको उपाधि कहते हैं; जैसे "गर्भस्थः श्यामो मैत्रतनयत्वात्, इतरतत्पुत्रवत्" अर्थात् गर्भमें स्थित जो पुत्र है वह श्याम (काला) है क्योंकि मैत्रका पुत्र है, मैत्रके अन्यपुत्रोंके समान अर्थात् जैसे मैत्रके अन्य पुत्र काले है, उसीप्रकार मैत्रका गर्भस्थ पुत्र भी काला है । इस अनुमानके प्रयोगमें शाक आदिके आहारका परिणाम जो है; वह उपाधि है अर्थात् गर्भस्थ मैत्रपुत्रकी श्यामताको सिद्ध करनेमें मैत्रके अन्य पुत्र कारण नहीं है, क्योंकि, जो मैत्रके पुत्र नहीं है, उनमें भी श्यामता देखी जाती है । इसकारण गर्भस्थकी श्यामताका कारण शाकादिके आहारका परिणाम है अर्थात् उस गर्भस्थ पुत्रकी माता शाक आदिका भक्षण अधिक करेगी तो वह पुत्र श्याम होगा। और यह शाकादिके आहारका परिणाम उपाधि है, क्योंकि, साधन ( हेतु) रूप जो मैत्रके अन्य पुत्र हैं, उनमें तो नहीं फू रहता है और श्यामतारूप जो साध्य है, उसमें रहता है; उसी प्रकार जो इस प्रकृत अनुमानमें भी जडत्व उपाधि है सो ही दिखलाते है-ईश्वरके ज्ञानसे भिन्न तथा प्रमेय होनेपर भी जो जडरूप स्तंभ आदि पदार्थ है वेही अपनेसे भिन्न ऐसे किसी परपदार्थसे के प्रकाशित होते है, क्योंकि, जो अपने प्रकाशित होनेके लिये परपदार्थका मुख देखना अर्थात् परपदार्थकी अपेक्षा ( जरूरत ) रखना है; वही जडका लक्षण है । और ज्ञान जडरूप नहीं है। इस कारण यह जडत्व ईश्वरज्ञानसे भिन्न और प्रमेय ऐसे ज्ञानरूप . साधनमें नहीं रहता है। और यह जडत्व खान्यप्रकाशकतारूप साध्यके साथ व्याप्तिको धारण करता है; यह स्पष्ट ही है। क्योंयू कि; जडत्वको छोड़कर खप्रकाशकताका अभाव और खप्रकाशताके अभावको छोड़कर जडत्व ये दोनों कही भी नहीं देखे जाते है। * अर्थात् जो जड़ है, वही अपनेसे भिन्न दूसरे पदार्थ द्वारा प्रकाशित होता है और जो पदार्थ परसे प्रकाशित होता है वही जड़ है। ॐ भावार्थ-जैसे शाक आदिके आहारका परिणाम मैत्रपुत्ररूपी साधनमें न रहकर श्यामतारूपी साध्यके साथ व्याप्तिको धारण ॥९७॥
SR No.010452
Book TitleRaichandra Jain Shastra Mala Syadwad Manjiri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParamshrut Prabhavak Mandal
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1910
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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