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________________ I |रूपी कलंकका पंक (कईम) है वह कहीं नहीं जाता है अर्थात् राज्यमिलनेपर भी वह पुरुष पुत्रके मारनेरूप कलंकसे दूषित रहता है उसी प्रकार वेदोक्त हिंसाके करनेसे देवता आदिकी प्रीतिके सिद्ध हो जानेपर भी जीवोंकी हिंसासे उत्पन्न हुआ पाप नष्ट नहीं होता है अर्थात् यज्ञकर्ता पापका भागी रहता ही है । 'नृपतित्वलिप्सा' इत्यादि वाक्यमें जो आचार्यने लिप्साशब्दका प्रयोग किया है उससे आचार्य यह विदित करते हैं कि-जैसे कोई दूसरा न कर सके ऐसे उस पुत्रको मारनेरूप खोटे कर्मसे उत्तम कोका मूल नाश करनेवाले उस महानिंद्य परिणामोंके धारक पापीपुरुषके राज्यको प्राप्त करनेमें केवल इच्छा ला और उस राज्यकी प्राप्ति नहीं है, उसी प्रकार आगामीकालमें होनेवाली इष्टसिद्धिके लिये वेदोक्त हिंसाको करते हुए; उन कुवादियोंके भी देवताआदिको प्रसन्न करनेमें मनका राज्य ही है । उससे उन कुवादियोंके उत्तमजनोंद्वारा पूज्यपना भी नही होता है और इंद्रादि देवोंकी तृप्ति भी सिद्ध नहीं होती है। क्योंकि उन कुवादियोंका यह मत पूर्वोक्त प्रकारसे खंडित हो चुका है । इसप्रकार काव्यका अर्थ है ॥ ११॥ - सांप्रतं नित्यपरोक्षज्ञानवादिनां मीमांसकभेदभट्टानामेकात्मसमवायिज्ञानान्तरवेद्यज्ञानवादिनां च योगान मतं विकुट्टयन्नाह | अब 'ज्ञान सदा परोक्ष ही है अर्थात् ज्ञान अपना प्रत्यक्ष आप नहीं कर सकता है. दूसरे ज्ञानसे ही ज्ञानका प्रत्यक्ष होता है। | ऐसा कहनेवाले जो मीमांसकोंके भेदोंमें भट्टमतानुयायी है उनके मतका और 'एक आत्मामें मिला हुआ जो ज्ञान है उस ज्ञानसे) अन्य जो ज्ञान है, उससे ज्ञानका निश्चय होता है। ऐसा माननेवाले जो योगमतावलवी है, उनके मतका खंडन करते हुए पण आचार्य इस निम्नलिखित काव्यका कथन करते हैं: स्वार्थावबोधमक्षम एवं बोधः प्रकाशते नार्थकथाऽन्यथा तु। परे परेभ्यो भयतस्तथापि प्रपेदिरे ज्ञानमनात्मनिष्ठम् ॥ १२॥ सूत्रभावार्थ:-ज्ञान जो है वह निज और पर पदार्थके जानने में समर्थ ही प्रतिभासता है। जो ऐसा न हो तो पदार्थकी कथाको | भी कौन कहे । तौ भी हे नाथ, अन्यमतवालोंने पूर्वपक्षवादियोंके भयसे ज्ञानको अपने ज्ञानसे रहित मान लिया है ॥ १२ ॥
SR No.010452
Book TitleRaichandra Jain Shastra Mala Syadwad Manjiri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParamshrut Prabhavak Mandal
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1910
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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