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________________ साद्वादम. ॥६९॥ तदन्तःपातिनां छलजातिनिग्रहस्थानानां परोपन्यासनिरासमात्रफलतया अत्यन्तमनुपादेयत्वात्तदुपदेशदातुर्वैरा-नाराजै.शा. ग्यमुपहसन्नाह ।_वैशेषिक और नैयायिक इन दोनोंके सिद्धान्त प्रायः समान है। इस कारण पूर्वोक्त प्रकारसे जो वैशेषिकोंके मतका खडन किया है। गया है; उससे नैयायिकोंके मतका खडन भी हो चुका ही समझना चाहिये और पदार्थों में उन दोनोंके भी समान खीकारता नहीं है अर्थात् वैशेषिक तथा नैयायिक ये दोनों पदार्थोको भिन्न २ प्रकारसे मानते हैं; अतः इस अवसरमें यद्यपि अक्षपाद (न्यायसूत्रकार गौतम ऋषी) के कहे हुए सब पदार्थोंको मोक्षके प्रति असाधकतम (मोक्षकी प्राप्ति न करनेवाले ) कहने चाहिये तथापि उन पदार्थोंके मध्यमें रहनेवाले जो छल, जाति तथा निग्रहस्थान नामक तीन पदार्थ है, वे केवल परके कथनका तिरस्कार करनेरूप ही प्रयोजनको धारण करते है अतः सर्वथा ग्रहण करने योग्य नहीं है, इस कारण उन छल जाति और निग्रहस्थानोंका उपदेश देनेवाले गौतम ऋषीके बैराग्यका हास्य करते हुए आचार्य अग्रिम कान्यका कथन करते है। स्वयं विवादग्रहिले वितण्डापाण्डित्यकण्डूलमुखे जनेऽस्मिन् । मायोपदेशात्परमर्म भिन्दन्नहो विरक्तो मुनिरन्यदीयः॥१०॥ सूत्रभावार्थः-अपने आप ही विवादरूपी पिशाचसे गृहीत ( पकड़े हुए ) और वितंडाकी चतुराँईसे मानो खुजलीको ही धारण करता है मुख जिनका ऐसे मूर्खसदृश मनुष्योंमें मायाका उपदेश देकर परमर्मोंको अर्थात् वादीके सिद्धान्तको सिद्ध करनेमें समर्थ उत्तम हेतुओंको भेदता हुआ नैयायिकोंका गोतममुनि वैराग्यका धारक है; यह आश्चर्य है ॥१०॥ ॥६९॥ व्याख्या। अन्येऽविज्ञातत्वदाज्ञासारतयाऽनुपादेयनामानः परे तेषामयं शास्तृत्वेन संबन्धी अन्यदीयो मुनिर- ॥ क्षपादऋषिरहो विरक्तोऽहो वैराग्यवान् । (अहो इत्युपहासगर्भमाश्चर्य सूचयति।) (अन्यदीय इत्यत्र “ईयकारके"
SR No.010452
Book TitleRaichandra Jain Shastra Mala Syadwad Manjiri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParamshrut Prabhavak Mandal
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1910
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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