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________________ स्थाद्वादमः शमें भेद माना गया है, तथापि यहांपर इस सूक्ष्मताका विचार न करना चाहिये ] और प्रदेशोंमें भी अवयवका व्यवहार होनेसे प्रदेशोंके कार्यता है अर्थात् प्रदेशोंको अवयवरूप माननेसे प्रदेश कार्य है, इस विषयको तो आगे कहेंगे। नन्वात्मनां कार्यत्वे घटादिवत्प्राक्प्रसिद्धसमानजातीयावयवारभ्यत्वप्रसक्तिः। अवयवा ह्यवयविनमारभन्ते यथा तन्तवः पटमिति चेत् न वाच्यम् । न खलु घटादावपि कार्ये प्राक्प्रसिद्धसमानजातीयकपालसंयोगारभ्यत्वं दृष्टम् । कुम्भकारादिव्यापारान्वितान्मृत्पिण्डात्प्रथममेव पृथुबुध्नोदराद्याकारस्यास्योत्पत्तिप्रतीतेः। द्रव्यस्य हि पूर्वाकारपरित्यागेनोत्तराकारपरिणामः कार्यत्वं तच्च वहिरिवान्तरण्यनुभूयत एव । ततश्चात्मापि स्यात्कार्यः । न च पटादौ स्वावयवसंयोगपूर्वककार्यत्वोपलम्भात् सर्वत्र तथाभावो युक्तः। काष्टे लोहलेख्यत्वोपलम्भावनेऽपि तथाभावप्रसङ्गात्। प्रमाणवाधनमुभयन तुल्यम् । न चोक्तलक्षणकार्यत्वाभ्युपगमेऽप्यात्मनोऽनित्यत्वानुषङ्गात्प्रतिसन्धानाऽभावोऽनुपज्यते । कथञ्चिदनित्यत्वे सत्येवास्योपपद्यमानत्वात् । प्रतिसन्धानं हि यमहमद्राक्षं तमहं स्मरामीत्यादिरूपम् । तच्चैकान्तनित्यत्वे कथमुपपद्यते । अवस्थाभेदात् । अन्या ह्यनुभवावस्था अन्या च स्मरणावस्था । अवस्थाभेदे 6 * चावस्थावतोऽपि भेदादेकरूपत्वक्षतेः कथञ्चिदनित्यत्वं युक्त्यायातं केन वार्यताम् । y शंका-यदि आत्मा कार्य होवेंगे तो उन कार्यरूप आत्माओंके घट आदिकी तरह पूर्वप्रसिद्ध समानजातीय अवयवोंसे उत्पन्न होनेकी योग्यताका प्रसग होगा । क्योंकि, अवयव अवयवीको उत्पन्न करते है। जैसे कि-ततुरूप अवयव पटरूप अवयवीको ५ उत्पन्न करते है। भावार्थ-जो कार्य होता है, वह अवयवी होता है और अवयवीको उत्पन्न करनेवाले अवयव है, अत जैसे ४ घटरूप अवयवी अपनेसे पहले विद्यमानतासे प्रसिद्ध जो समानजातीय अर्थात् अपनी पार्थिवत्व जातिको ही धारण करनेवाले दो कपालरूप अवयव है, उनसे उत्पन्न होता है, उसी प्रकार आत्मा भी पूर्वप्रसिद्ध समानजातीय ( अपनी आत्मत्वजातिके धारक ) अवयवोंसे उत्पन्न होवेंगे और ऐसा होना आपको इष्ट नहीं है। समाधान-ऐसा न कहना चाहिये । क्योंकि, घट आदि कार्यमें ॐ भी पूर्वप्रसिद्ध जो समानजातिके धारक दो कपालरूप अवयव है; उनके सयोगसे उत्पन्न होनेकी योग्यता नहीं देखते है। कारण ! कि-कुंभकार आदिके व्यापारसे सहित जो मृत्तिकाका पिंड है, उसके द्वारा दो कपालोके उत्पन्न होने के पहले ही पृथु तथा बुघ्न ऐसे है उदरके जैसे आकारको धारण करनेवाले इस घटकी उत्पत्ति प्रतीत होती है। भावार्थ-तुम जो पूर्वप्रसिद्ध समानजातीय कपाल
SR No.010452
Book TitleRaichandra Jain Shastra Mala Syadwad Manjiri
Original Sutra AuthorN/A
AuthorParamshrut Prabhavak Mandal
PublisherParamshrut Prabhavak Mandal
Publication Year1910
Total Pages443
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size30 MB
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