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________________ रायचन्द्रजैनशास्त्रमालायाम् 1 धौव्यस्वरूप है; उसीसे सत्ता है । यदि सत्ता नहि होय तो पदार्थोंका अभाव होजाय, क्योंकि सत्ता मूल है, और जितना कुछ समस्त वस्तुका विस्तार स्वरूप है, सो भी सत्तासे गर्भित है | और अनंत पर्यायोंके जितने भेद हैं, उतने सब इन उत्पादव्ययधौव्य स्वरूप भेदों से जाने जाते हैं । यह ही सामान्य स्वरूप सत्ता विशेषताकी अपेक्षासे प्रतिपक्ष लिये है । इस कारण सत्ता दो प्रकारकी है. अर्थात् महासत्ता और अवान्तर सत्ता । जो सत्ता उत्पादव्ययधौव्यरूप त्रिलक्षणसंयुक्त है, और एक है, तथा समस्त पदार्थोंमें रहती है, समस्तरूप है, और अनन्तपर्यायात्मक है सो तो महासत्ता है. और जो इसकी ही प्रतिपक्षिणी है, सो अवान्तरसत्ता है । सो यह महासत्ता की अपेक्षासे असत्ता है । उत्पादादि तीन लक्षणगर्भित नहीं है, अनेक है. एक पदार्थ में रहती है, एक स्वरूप है; एक पर्यायात्मक है. इस प्रकार प्रतिपक्षिणी अवान्तरसत्ता जाननी । इन दोनों में से जो समस्त पदार्थोंमें सामान्यरूपसे व्याप रही है, वह तो महासत्ता है । और जो दूसरी है सो अपने एक एक पदार्थके स्वरूपविषै निश्चिन्त विशेषरूप वर्ते है. इस कारण उसे अवान्तरसत्ता कहते हैं । महासत्ता अवान्तर सत्ताकी अपेक्षासे असत्ता है. अवान्तर सत्ता महासत्ता की अपेक्षासे असत्ता है. इसी प्रकार सत्ताकी असत्ता है. उत्पादादि तीन लक्षणसंयुक्त जो सत्ता है, वह ही तीन लक्षणसंयुक्त नहीं है | क्योंकि जिस स्वरूपसे उत्पाद है, उसकर उत्पाद ही है; जिस स्वरूकर व्यय है, उसकर व्ययही है; जिस स्वरूपकर धौव्यता है, उसकर धौव्य ही है. कारण उत्पादव्ययप्रौव्य जो वस्तुके स्वरूप हैं, उनमें एक एक स्वरूपको उत्पादादि तीन लक्षण नहीं होते. इसी कारण तीन लक्षणरूप सत्ताके तीन लक्षण नहीं हैं; और उस ही महासत्ताको अनेकता है.. क्योंकि निज निज पदार्थों में जो सत्ता है उससे पदार्थोंका निश्चय होता है । इस कारण सर्वपदार्थव्यापिनी महासत्ता निज २ एक पदार्थकी अपेक्षा से एक एक पदार्थविषै तिष्ठे है, ऐसी है । और जो वह महासत्ता सकलस्वरूप है, सो ही एकरूप हैं, क्योंकि अपने अपने पदार्थोंमें निश्चित एक ही स्वरूप है । इस कारण सकल स्वरूप सत्ताको एकरूप कहा जाता है, और जो वह महासत्ता अनंतपर्य्यायात्मक है, उसीको एक पर्यायस्वरूप कहते है; क्योंकि अपने २ पर्यायोंकी अपेक्षासे द्रव्योंकी अनन्त सत्ता हैं । एक द्रव्यके निश्चित पर्यायकी अपेक्षासे एकपर्यायरूप कहा जाता है. इसकारण अनन्तपर्यायस्वरूप सत्ताको एक पर्यायस्वरूप कहते हैं । यह जो सत्ताका स्वरूप कहा, तिसमें कुछ विरोध नहीं हैं. क्योंकि भगवान्‌का उपदेश सामान्यविशेषरूप दो नयोंके आधीन है. इसकारण महासत्ता और अवान्तर सत्तावों में कोई विरोध नहीं है ॥ आगे सत्ता और द्रव्यमें अभेद दिखाते हैं, - इस दवियदि गच्छदि ताई ताई सभाव पजयाई जं । दवियं तं भण्णंने अण्णण्णभद्रं तु सत्तादो ॥ ९ ॥
SR No.010451
Book TitleRaichandra Jain Shastra Mala Panchastikaya Samay Sara
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherZZZ Unknown
Publication Year
Total Pages157
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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