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________________ ७० पुरातन-जैनवाक्य-सूची धवलादि) ग्रन्थोंका सार ।' ग्रन्थको 'गोम्मटसंग्रहसूत्र' नाम भी इसी आशयको लेकर दिया गया है, जिसका उल्लेख कर्मकाण्डकी निम्न गाथामे पाया जाता है: गोम्मट-संगहसुत्त गोम्मटसिहरूवरि गोम्मटजिणो य । गोम्मटराय-विणिम्मिय-दक्खिणकुक्कुडजिणो जयउ ॥६६८॥ इस गाथामे उन तीन कार्यों का उल्लेख है और उन्हींका जयघोष किया गया है जिनके लिये गोम्मट उर्फ चामुण्डरायकी खास ख्याति है और वे है-१ गोम्मटसंग्रहसूत्र, २ गोम्मटजिन और ३ दक्षिणकुक्कुटजिन | गोम्मटसंग्रहसूत्र' गोम्मट के लिये सग्रह किया हुआ 'गोम्मटसार' नामका शास्त्र है, 'गोम्मटजिन' पटका अभिप्राय श्रोनेमिनाथकी उस एक हाथ-प्रमाण इन्द्रनीलमणिकी प्रतिमासे है जिसे गोम्मटरायने वनवाकर गोम्मट-शिखर अथात चन्द्रगिरि पर्वतपर स्थित अपने मन्दिर (वस्ति) मे स्थापित किया था और जिसको बावत यह कहा जाता है कि वह पहले चामुण्डराय-वस्तिमे मोजूद थी परन्तु बादको मालम नहीं कहाँ चली गई, उसके स्थान पर नेमिनाथकी एक दूसरी पॉच फुट ऊची प्रतिमा अन्यत्रसे लाकर विराजमान की गई है और जो अपने लेखपरले एचनके बनवाए हुए मन्दिरकी मालूम होती है। और दक्षिण-कुक्कुट-जिन बाहुबलीकी उक्त सुप्रसिद्ध विशालमूर्तिका ही नामान्तर है. जिस नाम के पीछे कुछ अनुश्र ति अथवा कथानक है और उसका सार इतना ही है कि उत्तर-देश पोदनपुरमे भरतचक्रवर्तीने वाहुबलीकी उन्हीकी शरीराकृति-जैसी मूर्ति बनवाई थी, जो कुक्कुट-सोसे व्याप्त हो जानेक कारण दुर्लभ-दर्शन हो गई थी। उसीके अनुरूप यह मूति दक्षिणमे विन्यगिरिपर स्थापित की गई है और उत्तरकी मूर्तिमे भिन्नता बतलानेके लिये हा इसको 'दक्षिण' विशेषण दिया गया है। अस्तु, इस गाथापरसे यह और भी स्पष्ट हो जाता है कि 'गोम्मट' चामुण्डरायका खास नाम था और वह संभवतः उनका प्राथमिक अथवा घरू वोलचालका नाम था । कुछ असें पहले आमतौरपर यह समझा जाता था कि गोम्मट' वाहुबलीका हा नानान्तर है और उनकी उक्त असाधारण मूर्तिका निर्माण कराने के कारण हा चामुण्डराय 'गोम्मट' तथा 'गोम्मटराय' नामसे प्रसिद्धिको प्रात हुए है । चुनॉचे प० गोविन्द पै जेस कुछ विद्वानोंने इसी वातको प्रकारान्तरसे पृष्ट करनेका यत्न भी किया है, परन्तु डाक्टर ए० एन० उपाध्येने अपने 'गोम्मट' नामक लेखमे ' उनकी सब युक्तियोंका निराकरण करते हुए, इस बातको बिल्कुल स्पष्ट कर दिया है कि गोम्मट' बाहुबलीका नाम न होकर चामुण्डरायका हो दूसरा नाम था और उनके इस नामके कारण ही बाहुवलीकी मूर्ति गोम्मटेश्वर जैस नामोंसे प्रसिद्धिको प्राप्त हुई है । इस मूर्ति के निर्माणसे पहले बाहुबली के लिये 'गाम्मट' नामकी कहींसे भी उपलब्धि नहीं होती। बादको कारकल आदिमे बनी हुई मूर्तियोको जो 'गोम्मटेश्वर' जैसा नाम दिया गया है उसका कारण इतना ही जान पड़ता है कि वे श्रवणबेल्गोलकी इस • मूर्तिकी नकल-मात्र हैं और इसलिये श्रवणबेलगोलकी मूर्तिके लिये जो नाम प्रसिद्ध हो गया था वही उनको भी दिया जाने लगा। अस्तु) चामुण्डरायने अपना सठ शलाकापुरुषोका पुराण-ग्रंथ, जिसे 'चामुण्डरायपुराण' भी कहते हैं शक संवत् ६०० (वि० सं० १०३५) मे बनाकर समाप्त किया है, और इसलिये उनके लिये निर्मित गोम्मट्सारका सुनिश्चित समय विक्रमकी ११वीं शताब्दी है। (ख) ग्रन्थकार और उनके गुरु ____गोम्मटसार ग्रन्थकं कर्ता प्राचार्य नेमिचन्द्र · सिद्धान्त-चक्रवर्ती' कहलाते थे । चक्रवर्ती जिस प्रकार चक्रसे छह खण्ड पृथ्वीकी निर्विघ्न साधना १ देखो, अनेकान्त वर्षे ४ कि० ३, ४ पृ० २२६, २६३ ।
SR No.010449
Book TitlePuratan Jain Vakya Suchi 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1950
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size33 MB
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