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________________ २४८ मि सो सत्तम रम्मकभोगखिदीए रम्म भोगखिदीए रम्म भोगखिदीए रम्मकविजओ रम्मो रम्माए सुधम्माए राधारपदी रम्मायारा गंगा रम्मारमणीयाओ रम्मुज्जाणेहिं जुदा कलसेहिं तेहिं य रयणकवाडवरावर यखचिदाणि तारिण रहाणं छंडइ रयरणत्तयकरणत्तय रयणत्तयजुत्ताणं रयणत्तयपढमाए रयणत्तयमाराहं रयणत्तयमेव गणं रयणन्तय-सजुत्त जिउ रयणत्तय-सजुत्ता रणसंजुत्त रयणत्तयसिद्धीए पुरातन-जैनवाक्य-सूची | रयणप्पहाए ओयणपहा तिहाररणपहावणीए रयणमए जगदीए रयणमयथंभजो जिद श्राय० ति० ४-२१ तिलो० प० ४-२३३४ तिलो० प० ४ - २३३८ तिलो० प० ४ - २३४७ तिलो० १०४ - २३३३ तिलो० प०८-४०८ | रयणमयपडलियाए तिलो० प०८-५६४ | रयणमयपीठसोहं तिलो० प० ४-२३३ | रयणमयभवणणिव हो तिलो० प० ५–७= | रयणभयवरदुवारो तिलो० प० ४ - १३६ | रयणमयवि उलपीढ़ रयणमयवेदिविहा जवू० प० ४-२७६ तिलो० सा० ७१६ | रयणमयवेदिरिणवहा तिलो० प० ४-८६२ | रयणमय वेदिरिणवहा भावसं० ८६ रयणसा० १५१ रयणमया पल्लागा रयणमया पल्ला गा रयणमया पामादा ० गु० ४५६ वसु० सा० ४६८ रयणमया बहुविहसो ? मोखा० ३४ | रयणमिह इंदणीलं रयणसा० १६३ रयणं चउपपहे पिव जोगसा० ८३ | रयणं च संखरया रयणाकरेक्कचमा यिमसा० ७४ कत्ति० गु० १६१ रयणाण आयरे भावति० १४ रयणाण महारयणं रयणसा० ६५ | रयणादिछट्टमतं मोक्खपा० ३६ रयणादिणारयाणं रयत्तस्स वे रयणत्तयं पि जोई रयणन्तयं वट्टइ रयणन्तये वि लद्धे रयणत्ते (त्तए) अलद्धे यदी दियर दहिउ रयणपुरे धम्मजिणो रयणप्पणी रयणप्पहचरमिंदययहपदी सुं रहपंकडू रयणप्पहपुढवी यह पुढवीए पपुढवीए पुढी पुढची दो रयणप्पह सक्कर पह कत्ति० दव्वस० ४० रयणायररयणपुरा कत्ति० श्रृणु० २६६ | रयणायरेहि जुत्तो भावपा० ३० | रयरणाहरणविहूसियजोगसा० ५७ यरिणदिणं ससिसूरा रयरिणविरामे समायतिलो० प० ४-५३६ तिलो० प० २ -१०८ | रयणिसमयहि ठिच्चा तिलो० प० २ - १६८ | रयणीय पढमजामे तिलो० प० २-८२ रयणुव्व जलहिपडियं तिलो० सा० २२२ | रविश्रयणे एक्क्के तिलो० सा० २०२ रविकत वेदविहा तिलो० प० ६-७ | रविखडादो वारस - तिलो० प० २-२१७ रविचदवादवे उत्रियाणतिलो० प० ३-७ | रविचंदं तह तारा तिलो० सा० १५२ | रविचंदा गहणं वसु० सा० १७२ | रविचंदारण पिच्छइ 1 र मूला० ११५२ तिलो० सा० १४६ तिलो० प०२-२०१ जवृ० प० ५- ३१ तिलो० प०४-२०० तिलो० प० ४- १३११ जवृ० प० ५-६८ जबृ० प० ६-५३ जंवृ० प० ३-१५६ जंबू० प० ५-४२ जंवृ० प० २-४३ जवृ० प० ४-६१ जवृ० प० ६-३० तिलो० प०८-२५६ जंवृ० प० ४ - १६० जंबू० प० १-४४ जंबू० प० ६ १०३ पचयणसा० १-३० कत्ति ० ० २६० तिलो० प० ५- १७४ तिलो० प० ३-१४४ तिलो० प० ४- १३५ कत्ति० ० ३२५ तिलो० प० २ - १५६ तिलो० प०२-२८८ तिलो० प० ४- १२५ जवू० प०६-२५ जबू० प० ४-१८५ भावस० ५६१ छेदपि ० ५७ वसु० सा० २८५ रिट्स० १८३ कति श्र० २६७ तिलो० प० ७-५०० जबू० प० ६-६७ तिलो० सा० ४०५ भ० श्रारा० १७३८ रिट्स० ४७ रिहस० १२४ रिहस० ५१
SR No.010449
Book TitlePuratan Jain Vakya Suchi 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1950
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size33 MB
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