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________________ २२६ पुरातन जैनवाक्य-सूची विगुणियतिमाससमधिय- तिलो० ५० ४-६४६ / विदियपणुवीसठाणं ।। पंचस०५-७१ विगुणियबीससहस्सा तिलो. ५० ४-११७४ विदियपहट्टिदसूरे तिलो०प०७-२८२ बिगुणियसद्विसहस्सं तिलो. प०८-२२० । विदियपीढाण उदो तिलो. प० ४-७६७ बिगुणियसहिसहस्सा तिलो० ५०८-२४५ विदियम्मि कालसमये जबू०प०२-१६ बिगुणे सगिट्टइसुपे तिलो० सा० ४२७ विदियम्मि फलिहभित्ती तिलो० ५० ५-१६ विरिण वि असुहे उमाणे कत्ति० अणु० ४७५ विदियस्स माणचरिमे लद्धिसा. ५५३ बिरिण वि जेण सहतु मुणि परम० प० २-३७ / विदियस्स वि पणठाणे गो० क० ३८० बिरिण वि दोस हवंति तसु परस० ५० २-४४ विदियस्स वीसजुत्तं तिलो० ५० ४-२०३४ बिगिण सयइँ असिआउसा सावय० दो० २१६ विदियं अट्ठावीसंx पचस०४-३०१ बितिएइंदियजीवे पचसं० ४-२४ विदियं अट्ठावीसंx पचस०५-१४ बितिचउपंचेंदियभेयदो वसु० सा० १४ विदियं चदुमणुसोरा- पचस०४-३८३ बितिचउरिदियसुहुमं पचस० ४-३६६ विदियं विदिय खडे गो० क. ६५७ बितिचउरिदियसुहुमं पंचस० ४-४६८ / विदियं व तदियकरणं __लद्धिसा० ३ बितिचपपुण्णजहराणं * तिलो० ५० ५-३१७ / विदिय व तदियभूमी तिलो०प० ४-२१६६ बितिचपपुएणजहएणं * गो० जी० ६६ / विदियाए पुढवीए मूला० १०५६ बितिचपमाणमसंखे- गो. जी. १७७ / विदियाओ वेदीओ तिलो. प०४-७६७ बिदिए मिच्छपाणा सिद्धत०६६ विदियादिसु इच्छंतो तिलो. प० २-१०७ बिदिओ दु जो पमाणो जंबू० ५० १३-५३ | विदियादिसु चउठाणा लद्धिसा० ५११ बिदिश्रो हु जो पमाणो जंबू० ५० १३-७७ विदियादिसु छसु पुढविसु । गो० क० २६३ बिदियकरणस्स पढमे लद्धिसा० १६१ विदियादिसु छसु पुढविसु भावति० ५१ बिदियकरणादिमादो लद्धिसा० ६२ विदियादिसु समयेसु अ लद्विसा० ५६७ चिदियकरणादिमादो लद्धिसा० १५२ बिदियादिसु समयेसु वि लद्धिसा० ४७४ बिदियकरणादिसमया लद्धिसा० ५२ विदियादिसु समयेसु हि लहिसा० २६५ बिदियकरणादिसमये लद्धिसा० २१६ | विदियादीकच्छाणं जंवू०प० ४-२४४ बिदियकरणादु जाव य लद्धिसा० १०५ | विदियादीणं दुगुणा तिलो. प० ६-७२ विदियकसाएहिं विणा पचस० ४-३३५ विदियादो पुण पढमा कसायपा० १७० (११७) बिदियकसाएहिं विणा पचस० ४-३४० (क) | विदियादो पुण पढमा कसायपा० १७१ (११८) बिदियकसायचउकं + पचसं० ३-१६ | विदियावरणे णव बंध गोक० ६३१ बिदियकसायचउक् + पचसं० ४-३११ | बिदियावलिस्स पढमे लखिसा० १३१ बिदियगमायाचरिमे लद्धिसा० ५५६ बिदियुवसमसम्मत्तं गो० जी० ६६५ बिदियगुणे अणथीणति- गो० क०६६ बिदियुवसमसम्मत्त गो० जी० ७२६ बिदियगुणे णिरयगदि श्रास. ति० २७ बिदिये तुरिये पणगे गो० क० ३७१ बिदियगुणे णिरयगदी भावति०८८ विदिये पढम कुंड तिलो. सा० ३१ बिदियट्ठिदिस्स दव्यं लद्धिसा० २१० विदिये वारे पुण्णं तिलो० सा० ३२ बिदियट्ठिदिस्स दव्वं लद्धिसा० २१३ बिदिये बिगिपणगयदे गो० क० ४६६ बिदियतिभागो किट्टी लद्धिसा० ४८८ बिदिये विदियणिसेगे गो० क० १६२ बिदियद्धापरिसेसे लद्धिसा० २६१ बियतियचउक्कमासे बिदियद्धासंखन्ना लद्धिसा० २८८ बिहि तिहिं चरहिं पंचहि * पचस० १-६६ बिदियद्धे लोभावर लद्धिसा० २८० | बिहि तिहिं चदहिं पंचहिं** गो० जी० १६७ बिदियपणवीसठाणं पचस० ४-२७८ | बिबाण समुद्दिट्टा जंवृ० ५० १२-७५ मूला० २६
SR No.010449
Book TitlePuratan Jain Vakya Suchi 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1950
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size33 MB
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