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________________ प्राकृतपद्यानुक्रमणी २१७ पुस्सस्स किएहचोइसि- विलो० ५० ४-६८६ पूजारंभं जो कारवेदि छेदपि० १५५ पुस्मस्मा पुण्णिमाए तिलो० ५० ५-६८१ | पूजारिहो दु जम्हा धम्मर० १३४ पुस्सस्स पुरिणमाए तिलो०प०४-६६० पूयण पज्जलग वा मूला०४७० पुस्सस्स सक्कचोद्दसि- तिलो. प०५-६७६ पूयफलेण तिलोके रयणसा० १४ पुस्से सिददसमीए तिलो. प०४-१८८ | पूयादिसु वयसहियं भावपा०८१ पुस्से सुक्केयारसि- तिलो० ५० ४-६६१ पृयावमाणरूविरूवं भ० थारा० १२३७ पुस्सो असिलेसाओ तिलो. प०७-४८८ पूयावयणं हिदभा-* मूला०३७७ पुहई सलिल च सुहं णाणसा० ५८ पूयावयण हिदभा-* भ. श्रारा० १२३ पुह खुल्लयदारेसुं तिलो०प०४-१८८७ | | पूरति गलति जदो तिलो० ५० १-६E पुह चउवीस-सहस्सा तिलो०५०४-२१७७ पेक्खागिहा य पुरदो जव० प०५-३७ पुह पुह कसायकालो गो० जी० २६५ | पेच्छइ जाणइ अणुचरइ परम० प० २-१३ पुह पुह चारक्खेत्ते तिलो०५०७-५५४ | पेच्छदि ण हि इह लोगं पवयणसा०३-२४२ ६(ज) पुह पुह ताणं परिही तिलो. प० ७-६२ | पेच्छह मोहविडंबण वसु० सा० १२३ पुह पुह दुतडाहितो तिलो. ५० ४-२४०६ | पेच्छंते बालाणं तिलो० ५० ४-४६२ पुह पुह दुतडाहितो तिलो० ५० ४-२४४० | पेज्जदो(हो)सविहत्ती कसायपा०३ पुह पुह पइएणयाणं तिलो. ५०८-२८५ पेज्जदो(दो)सविहत्ती __ क्सायपा० १३ (१) पुह पुह पोढतयस्स य तिलो० प० ४-१८२२ पेज्जं वा दोसो चा क्सायपा० २१ (३) पुह पुह पोक्खरिणीणं तिलो० ५० ४-२१८७ पेलिज्जते उवही तिलो०प०४-२४३८ पुह पुह वीससहस्सा तिजो० ५० ४-२१७६ पेसुण्ण-हास-कक्कस- णियमसा० ६२ पुह पुह मूलम्मि मुहे तिलो० प०४-२४१० पेसुएण-हास-फक्कस मूला० १२ पुह पुह ससिबिवारिणं तिलो. प०७-२१७ पोक्खरदीवद्धसं तिलो० प० ४-२७८४ पुह पुह सेसिंदाणं तिलो० ५०३-६६ पोक्खरमेघा सलिलं तिलो० ५० ४-१५५६ पंकोधोदयचलियस्से- लद्धिसा० ३४६ | पोक्खरवरउदधीए जंबू० ५० १२-२२ कोहस्स य उदये लद्धिसा० ३६१ / पोक्खरवस्वहिपहुदि तिलो० ५० ७-६१४ पुंडरियदहाहितो तिलो० ५०४-२३५० पोक्खरवरो त्ति दीओ तिलो० प०४-२७४१ पुंडुच्छवाडपउरो जबू० ५०८-११५ | पोक्खरवरो त्ति दीओ तिलो० ५० ५-१४ पुंबधद्धा अंतो गो. क. २०५ | पोक्खरवरो दु दीओ जवू० प०११-१७ पंवेदं वेदंता सिद्धभ० ६ | पोक्खरिणिवाविदीही जबू०प०२-१३६ वेदित्थिविगुत्रिय- श्रास० ति० ३५ पोक्खरिणिवाविपरा जबू०प०३-६५ पवेदे थीसंढं श्रास० ति० ४३ / पोक्खरिणिवाविपउरा जब० प०८-७६ पुवेदे संढित्थिी भावति. १० पोखरिणिवाविपउरा जंव० प०६-११ पवेदो देवाणं भावति० ७४ | पोक्खरिणिवाविपउरा जव० ५० १२-४ पुंवेदो मिच्छत्त पंचस० ३-७१ पोक्खरिणिवाविपउरे । जंबू प० १३-१६७ पुंसलिघरि जो भुजइ लिंगपा० २१ पोक्खरिणिवाविपउरो जब० प०८-२४ पुसजलणिदराणं लद्धिसा० ३२१ । | पोक्रवरिणिवाविपरो जबू० प०८-१७३ पुसद्वणित्थिजुदा गो० क० २६६ | पोक्खरिणिवाविवप्पिणि- जंब० प० ४-६० पूग-फल-रत्त-चंदण- जबू० ५०२-७६ | पोकरिणीणं मज्झे तिलो० ५०४-१९४७ पूजाए अवसाणे तिलो. प०३-२२७ | पोक्खरिणीरमणिज्जं तिलो०प०४-२००६ पूजादिसु णिरवेक्खो कत्ति० अणु० ४४६ | पोक्खरिणीरम्मे हिं तिलो०प०५-२०७ पूजादिसु णिरवेक्खो कत्ति० श्रणु० ४६० तिलो. प०८-४१८
SR No.010449
Book TitlePuratan Jain Vakya Suchi 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1950
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size33 MB
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