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________________ पुरातन - जैनवाक्य-सूची पुत्ते कलत्ते सजणम्मि मित्ते तिलो० १० २ - ३६६ | पुरिस वधमुवदि पुत्तो वि भाजाओ कत्ति० श्रणु० ६४ पुरिसादी पुच्छि पूध पुध वामिस्सो वा छेदपिं० २०४ | पुरिसादो लोहगयं फक्खयेहिं भरिदा जंबू० प० १३ – ११६ | पुरिसायारपमाणु जिय जंबू० प० ११–३४५ | पुरिसायारो पा पिं० ३४३ | पुरिसा वरमउड छेदपिं० ३५१ पुरिसिच्छियाहिलासी छेदपिं० २६८ रिसिच्छिसंढवेदो वसु० सा० २२८ | पुरिसित्थीवेदजुद तिलो० प० ४ - १३१ | पुरिसित्थीवेदजुदा तिलो० ० ४ - २३१ | पुरिसेण वि सहियाए तिलो० प० ४-५२३ | पुरिसे दुरवस जबू० प० ८ - १०७ | पुरिसे सव्वे जोगा वसु० सा० २१० | पुरिसो जह को वि [य] इह तिलो० सा० ८०२ | पुरिसोदएण चडिदस्सित्थीतिलो० सा० २८८ | पुरिसोदयेण चाडदे तिलो० सा० १००७ पूरिसोदयेण चडिदे तिलो० प० ४ - १६१२ | पुरिसो मक्कडिसरिसो तिलो० सा० १००२ परिसो वि जो ससुत्तो छेदपिं० २६७ | पुरुगुरणभोगे सेदे * मूला० ६३० | पुरुगुणभोगे सेदे तिलो० प० ८- ६७ | पुरुगुणभोगे सेदे सम्मइ० १-४ | पुरुमहमुदारुरालं + भ० रा० १२२४ | पुरुमहमुदारुरालं + भ० श्रारा० १२२६ | पुरुसा पुरुसुत्तमसप्पुरुसतिलो० सा० २७६ | पुरुसा पुरुसुत्तमसप्पुरुस -- सम्मइ० १-३२ पुत्रकदकम्मसड x पचस० ४-४०६ | पुव्वकदकम्मसड X भ० श्रारा० १०८० पुव्यकद (य) कम्म सडणं x द्धिसा० २६३ | पुव्वकदमक भ० श्रारा० ६४४ | पुत्रकदमज्झपाव भ० श्रारा० १६१० | पुञ्चग (क ) दपावगुरुगो भ० रा० १७६६ | पुव्वज्जिदाहि सुचरिदलद्धिसा० ४५६ | पुन्वठियं (य) खवइ कम्मं द्विसा० २६१ २१४ पुष्फ॰पइण्णएसु य पफवदि पुष्कवदिए पुष्पवदी जदि गारी पुदी जदि विरदी पफजलिं खिवित्ता पुष्पिदकमल व रोहिं पुष्पिदपकजपीढा पुप्फुत्तराभिधारणा पुफ्फुल्लकमल कुत्र लय पुरगाम पट्टणा इसु दूरगामवट्टणादी परदो गतूण बहि पुरदो पासाददुगं पुरदो महाहाणं पुरदो सुरकीडामणिपुरि (र) दो धारिदऽचेलयपूरिमचरिमा दु जम्हा पुरिमावलीपवदिपुरिसज्जायं तु पडुच पुरिसत्तादिरिदाण परिसत्तादीणि पुणो पुरिसपिया क पुरसम्म पुरिससद्दो पुरिसस वास पुरिस पत्थ पुरिसस्स उत्तणवकं पुरिसस दुचीसंभ परिसरस पावकम्मोपुरिसस्स पुणो साधू परिसरस य पढमदि पुरिसरस य पढमठिदी पुरिसं को कोह परिसं चउसंजलणं - पुरिसं चउसंजलणं. पुरिसं चदुसंजलणं * पुरिसं चदुसंजल पुण्वहस्स तिजोगो पचस० ४-४८६ | पुव्वहे वरण्हे पंचस० ३-२६ | पुव्त्ररहे मज्झरहे पचस० ४-३२० | पुत्रदिसाए चूलियपचसं० ४-४६३ | पुत्रदिसाए जसरसदिगो० क० १०१ | पुवटिसाए पढमं प भ० श्रारा० ६७७ लद्धिमा० २६८ द्विसा० २६६ जोगसा० ६४ मोक्खपा० ८४ तिलो० प०४-३५८ समय० ३३६ गो० जी० २७० तिलो० तिलो० प०८-६६७ १० प० ४-४१४ सीलपा० २६ लद्धिसा० ३२२ पचस० ४-४६ समय० २२४ लद्धिसा० ६०२ गो० क० ४८४ गो० क० ५१३ भ० श्रारा० १३६६ सुत्तपा० ४ पंचसं० १-१०६ गो० जी० २७२ कम्मप० ६४ पचस० १-६३ गो० जी० २२६ तिलो० प० ६-३६ तिलो० सा० २५६ मूला० २४५ भ० श्रारा० १८४७ भावसं० ३४४ भ० श्रारा० १६२६ भ० श्रारा० १४२४ तिलो० प० ४-६१६ तिलो० प०८-३७६ रयणसा० ५६ लद्धिसा० ६४६ तिलो० प० ५-१०२ कत्ति० श्रणु० ३४४ तिलो० प० ४-१८३४ तिलो० प० ४ -२७७३ तिलो० प०५-२००
SR No.010449
Book TitlePuratan Jain Vakya Suchi 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1950
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size33 MB
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