SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 395
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प पणिदरसभोयर य x पणिधाणजोगजुत्तो मूला० २६७ परिधारणं पि.यदुविह पणिधी आरणच्चुद पणुत्रीसवियधरणुसय परवीको डिकोडी पणुवीसको डिकोडी पणिधापि यदुविह भ० श्रारा० ११६ ( १ ) | पणुवीसुत्तरपणसय मूला० २६८ | परपुत्तरिजुदतिसया तिलो० प० १-२०७ पढालपरगतीस तिलो० प० ४-८२३ | पट्टि - सदा या तिलो० १० ५-७ | पट्टि - सहस्सा रिंग जनृ० प० १–१६, परराट्ठ-सहस्सेहिय पराट्ठि च सहस्सा पोसको डिकोडी जवृ० प० ११-१८२ तिलो० प० ८-३१३ पशुवासजुदेक्कमयं परवीसजायस पीजोइ पशुचीसजोयाई पवासजोयगाण पशुवीसजोया परपुत्री सजोया पवीसजोया रंग पवीसजोद पवीससमधिरेया पवीस महिरेयहि पीसा परपुवीस सहम्साइ वीसहरसा सहस्साइ परपुत्रीस सहरसाइ पचीस सहसारिण परवीससहस्साधिय वीस सुबुद्धे परपुत्रीस उतीस पणुवीस च सहस्सा पर वीस वीस परवीमं दो सिया पर वीस लक्खाणि परवीसं लक्खाणि पर वीस लक्खा रिंग पीसाई पचय वीसा उद्धा 'परवीसावियछस्सय परवीसाधियतियमय वीसा परणामा प्राकृतपद्यानुक्रमणी गो० जी० १३७ | पशुवीसा पण्णासा वीसा विक्खंभा r जनृ० प० ७–१७ गो० जी० ४२५ तिलो० प० ४–२१७ } : ! पट्टि च सहस्सा पण्णा मारिय सोयरा पण्णत्तरि उच्छे हो परागर्त्तारि दलतुगा मूला० ११५० - पण्णत्तरि वरणा पणत्तरिसय या जयृ० प० ११-१४० तिलो० प० ३ -१७६ । पण्णत्तरिसयसहिय | तिलो० प० ४ - २१६ तिलो० प० ४ - १०८ जवू० १० ८-१५५ जबू० प० ८-११ तिलो० प० ४-११४२ पचस० ५-३८३ तिलो० प० ४-१४२२ तिलो० प० ४-२ १४ १ तिलो० प०८-१८१ तिलो० प० ४-१२६६ तिलो० प०२-१११ ' तिलो० प० ८ - १०६ १६६ जंबू०, प० ३ - १६७ जवृ० प० ४-११२ निलो० प० ४-४६४ तिलो० प०४-८६० गो जी० ३६४ जबू० प० ३-३० तिलो० प० ४-१२२१ जबू० प० १२-६० जबू० प० ११-७२ जनृ० प० १२-७० परम०प०२ - १४० क्षे० १ (वा) परणरठाणे सुररण परसह ठिदियो पारस मुहुत्ताइ पण रस लक्खवच्छर परणरसत्रासलक्खा पारससया दहा पचस० १-४३ परापरसससहराण जबू० प० ३ - ८ | परणरससहरसाइ पचस० -४२० पारससहस्सारिण तिलो० प० ४-३० परमसहस्सारिण तिलो० प० २-१६ परणरससहस्सा ि तिलो० प०८-४७ पण्णरसहदा रज्जू तिलो० प०८-१६२ परणरस छत्तिय छ - पचस० ५-४३३ | पण्णरसेसु जिंगिदा जबू० प० २-३३ | पण्णरसेहिं गुड़ि तिलो० प० ४-४६६ तिलो० प० ४-१३०० जनृ० प० ३-४७ पर सोलट्ठारस पण्णवरण भाविभूढ़े :परवरण भाविभूदे * जबृ० प०५-३ तिलो० प० ५-१८२ अगप० १-१३ जवृ० प० १-४७ सुदख० ५६ तिलो० प०५-११८ परणत्तरीसह स्मा परणत्तरीसहस्सा परणव्भद्दिय च सय परणरकसायभयदुग पर छत्तिय छष्पच पचस० ५-४६३ । पण्णर जिग् खदु तिजिणा तिलो० मा० ८४३ तिलो० प० ८-४७७ जबू० प० ११-१०३ तिलो० प० ४- १३६७ गो० क० ४०१ पचस० ४-४२२ तिलो० १०७-२८८ तिलो० प० ४-१२६२ तिलो० प० ४-६५२ तिलो० प० ४-१६७२ तिलो० प० ७-११६ • पचसं० ५-३८० तिलो० प० ४-२१ तिलो० प० ४-१७१६ तिलो० प० ८-६२७ तिलो० प० १-२२१ पचम० ४-४८४ तिलो० प० ४-१२८६ तिलो० प० ७-१/२४ गो० क० ८६५ रायच० ४५ देव्वस० णय० २१८ 2
SR No.010449
Book TitlePuratan Jain Vakya Suchi 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1950
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size33 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy