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________________ प्राकृतपद्यानुक्रमणी १८५ देवासुरमहिदाओ तिलो० ५० ५-२३, देवेहिं सादिरेगो देवासुरा मणुस्सा कलाणा० ३२ | देवेहि सादिरेया देवासुरिंदमहिदे जवू० ५० १-१ देवेहिं सादिरेया देवासुरिंदमहियं जवू० ५० १३-८० | देवो वेगुव्वे देवासुरिंदमहिया जबू० ५० ७-६२ | देवो पुरिसो एक्को देवाहारे सत्थं गो० क० ६०२ देवो माणी संतो देविय-माणुसभोगे भ० श्रारा० १२१६ | देवो वि धम्मचत्तो देविंदचक्कवट्टी भ० श्रारा० १२६५ | देसकुलजम्मरूवं देविंदचक्कवट्टी भ० श्रारा० १६५५ | देस-कुल-जाइ-सुद्धा देविंदचक्कवट्टो भ० श्रारा० २१४८ | देस-कुल-जाइ-सुद्धो देविंदचक्कहरमंडलीय- वसु० सा० ३३४ देस-कुल-रूवमारोग्गदेविंदप्पहुदीण तिलो०प०३-१८ | देसगुणे देसजमो देविद-राय-गहवइ- __ भ० श्रारा० ८७६ | देसजमे सुहलेस्सतिवेददेवीश्रो तिरिण मया तिलो० ५०३-१०३ | देसणरे तिरिये तियदेवीण विरिण परिसा जवू०प०६-१३७ देसतियेसु वि एवं देवीण परिवारा तिलो० प० ७-७७ | देस त्ति य सव्व त्ति य देवी तस्स पसिद्धा तिलो० प० ४-४४६ | देसत्थरज्जदुग्गं देवी-देव-समाज सिलो० ५०८-५७२ | देसम्मि तम्मि णयरी देवा-देवसमूह तिलो. प०३-२१३ | देसम्मि तम्मि णेया देवी-देव-समूहा तिलो० ५०४-११८२ | देसम्मि तम्मि मज्झे देवी-देव-सरिच्छा तिलो. प० ४-३८५ | देसम्मि तम्मि मज्झे देवाधारिणि (धरणी) णामा तिलो०प०४-४६३ | देसम्मि तम्मि होइ य देवीपासादुदया तिलो० सा० ५१४ | देसम्मि तिलयभूदा देवीपुरउदयादो तिलो० प०८-४१५ | देसम्मि होइ एयरी देवी-भवणुच्छेहा तिलो० ५०८-४१३ देसम्मि होइ एयरी देवीहि पहिंदेहि विलो० ५०-३७७ | देसवई देसत्थो + देवुत्तरकुरुखेत्त जबू० प०६-१७६ | देमवई देसत्थो+ देवे अणण्णभावो पचस०१-१६५ देसविरदादि उवरिमदेवे थुवइ तियाले(ल) भावस० ३५५ देसविरदे पमत्ते देवे वहिऊण गुणा भावस०४८ | देसविरये च भगा देवे वा वेगुन्वे गो. क. ११८ देसस्स तस्स गया देवेसु णारयेसु य मूला० १११४ देसस्स तस्स णेया देवेसु देव-मणुए . लद्धिसा० १४६ देसस्स तस्स णेया देवेसु देव-मणुवे । गो. क. ५६२ देसस्स तस्स णेया देवेसु य इदत्त जबू० प. ११-३५८ देसस्स तस्स णेया देवेसु य णिरया पचस० ५-४८० देसस्स तस्स णेया देवेसु लोगपाला जबू० ५० ११-३०६ | देसस्स तस्स गेया देवेसु सुसमसुसमो जबृ०५० २-१७२ | देसस्स तस्स दिट्ठा देवे हारोरालिय श्रास. ति० ३२ | देसस्स तस्स मज्झे देवेहि भेभीसिदो वि हु भ० श्रारा० १६६ | देसस्स मज्झभागे गो० जी० ६६२ गो० जी० २६० गो० जी० २७८ गो. क. ३१४ श्रगप०२-२१ भ. श्रारा० १५६४ कत्ति० अणु०४६३ मूला. ७५६ श्रा० भ०१ वसु० सा० ३८८ भ० श्रारा० १८६६ भावति०३७ भावति ११ गो० क० ६४८ गो० क० ३८२ मूला० ४३८ दवस. एय० २४५ जबू०प०८-४६ जंवू० प०८-१६६ जबू०प०६-२७ जबू०प०१-१५६ जबू०प०८-१६० जंवू० प०८-७३ जबू०प०८-३६ जंवू०प०८-६० णयच० ७२ दवस. णय. २४२ तिलो० प० २-२७५ गो० जी० १३ पंचस०५-२०० चवू० प०८-१३५ जबू० प०८-१४४ जवू०प०१-३४ जब० प०१-१० जब० प०६-१२१ जब० प०६-१३० जव० ५०६-१३६ जब० प०६-१७ जंबू० ५० ७-३८ जय० ५०८-११२
SR No.010449
Book TitlePuratan Jain Vakya Suchi 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1950
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size33 MB
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