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________________ ११८ पुरातन-जैनवाक्य-सूची जिणवयण सद्दहाणो मूला० ७३३ जिम चिंतिज्जड घरु घरिणि सुप्प० दो० ६४ जिणवयणममिदभूदं म० श्रारा० १५६० जिम माइज्जइ वल्लहउ सुप्प० दो०६ जिणवयणे अणुरत्ता मूला० ७२ जिम लोणु विलिजइ पाणियहँ पाहु० दो० १७६ जिणवयणेयग्गमणो कत्ति० अणु० ३५६ | जिय अणुमित्त वि दुक्खडा परम० प०२-१२० जिएवर-चरणंबुरुह भावपा० १५१ जियकोहो जियमाणो धम्मर० १३५ जिणवर-मएण जोई मोवस्त्रपा० २० जियभय-जियउबसग्गे जोगिम० २२ जिणवर-वयणविणिग्गय- जंबू० ५० १३-१४४ जिय मंतई सत्तक्खरई सावय. दो० २१५ जिणवर-सासणमतुल भावस. १६६ जिह छब्बीसं ठाण पचसं० ५-६६ जिणवरु झावहिं जीव तुहुँ पाहु० दो० १६७ | जिह तिरह तीसाणं * पचस० ५-६५ जिणवंदणापविट्ठा तिलो० प० ४-६२७ जिह तिएह तीसाणं * पंचसं०४-२७२ जिणसत्थादो अटे पवयणसा० १-८६ जिह पढमं उपतीसं पचसं० ५-८१ जिणसमकोट्ठविदा तिलो० सा० ८४२ | जिह समिलहिं सायरगयहिं सावय० दो० ३ जिणसासण-माहप्पं कत्ति० अणु० ४२२ | जीइ दिसाए वरणा आय० ति०६-१७ जिण-सिद्ध-साहु-धम्मा भ० श्रारा० ३२२ परम०प०२-२२ जिण-सिद्ध-सूरि-पाठय- वसु० सा० ३८० जीउ सचेयणु दव्वु मुणि परम० प० २-१७ जिण-सिद्धाणं पडिमा तिलो० सा० १०१५ तिलो०प०४-१०८६ जिणहरि लिहियई मंडियई सावय० दो० २०१ जीए जीओ दिट्ठो तिलो० प० ४-१०७७ जिणु अञ्चइ सो अक्खयहिं सावय० दो० १८५ | जीए ण होति मुणिणो तिलो० ५० ४-१०५६ जिणु गुणु देइ अचेयणु वि सावय० दो० २१८ | जीए पस्स(सेय) जलाणिल- तिलो०प०४-१०७१ जिणु सुमिरहु जिणु चितवहु जोगसा० १६ जीए लाला सेम्मच्छे- तिलो० ५० ४-१०६७ जिणो देवो जिणो देवो कल्लाणा० ४६ जीओप्पत्तिलयाणं तिलो. प० ४-२१५७ जिणोवदिट्ठागमभावणिज्नं तिलो०५०३-२१५ | जीरदि समयपबद्धं x गो० क०५ जिएिणं वत्थिं जेम बुहु परम०प० २-१७६ | जीरदि समयपबद्धं x कम्मप०५ । जिण्णुद्धारपदि(इ)ट्ठा- रयणसा० ३२ जीवइ ण जीवइ चिय श्राय०ति०८-१७ जित्थु ण इंदिय-सुह-दुह। परम० ५० १-२८ जीवकदी तुरिमंसा तिलो. प० ४-१८२ जिदउवसम्गपरीसह मूला० ५२० जीवकम्माण उहयं भावसं०३२४ जिदकोहमाणमाया मूला० ५६१ जीवगदमजीवगदं भ. श्रारा०८१० जिदणिद्दा तल्लिच्छा भ० श्रारा० ६६० जीवगुणठाणसरणा सिद्धत०१ जिदमोहस्स दु जइया समय० ३३ जीवगुणे तह जोए सिद्धत०३ जिदरागो जिददोसो भ० श्रारा० १६१८ जीवट्ठाणवियप्पा पचस० १-३३ जिभाए वि लिहतो भ० श्रारा०४८१ जीवणिबद्धं देहं बा० अणु०६ जिन्भाछेयण णयणा- वसु० सा० १६८ जीवणिबद्धा एदे(ए) समय०७४ जिम्मा जिव्भगलोला तिलो० प० २-४२ / जीवणिबद्धा बद्धा मुला०६ जिब्भा जिभिगसपणा तिलो. सा. १५६ / जीवत्तं भव्यत्तम गो० क० १६ म० श्रारा० १६६१ | जीवत्तं भव्वत्त भावति० १०० जिभिदिउ जिय संवरहि सावय० दो० १२४ जीवदया दम सच्चं सीलपा० १६ जिभिंदियणोइंदिय- तिलो० ५० ४-५०६१ जीवदि जीविस्सदि जो भावति. १३ जिभिदियसुदणाणा- तिलो० प० ४-६८५ | जीवदुगं उत्तटुं गो० जी० ६२१ जिभुक्कस्सखिदीदो तिलो० ५० ४-१८६ / जीव-दु विदेहमज्के तिलो० सा० ७७७ जिभोवत्थणिमित्तं मूला० ६८८ | जीवपएसापचयं भावस० ६२२
SR No.010449
Book TitlePuratan Jain Vakya Suchi 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1950
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size33 MB
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