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________________ ११६ जाणित्ता सपत्ती जा यिसरीरछाया कत्ति० श्रणु० ३५० रिठ्ठस० ७४ जायंति 'जुयलजुयला जायंते सुरोए जासिसल देहियहॅ परम०प०२ - ४६ ते ० १ | जायंतो य मरतो जागुगसरीरभवियं जामा मजले जाणुपमाणतोये जाविहीरो भरिण जाणीव जादजुगले दिवसा जादं सयं समत्तं जादा भोगभूवे जादि - कुल संवासं पुरातन जैनवाक्य-सूची जामु सुहासु भावडा जाय अक्खय- गिहि-रयजायइ कुपत्तदाणेजायइरिगविज्जदारोजायण - समरपुराणमरणा जायदि जीवरसेवं जायद व एस्सदि गो० क० ५५ छेदपिं० ८२ रिट्स ० १४३ रिस० ३०२ | जारिसत्रो देहत्थो जारिसया सिद्धप्पा जंबू० प० ११-६६ तिलो० सा० ७८६ पवयणसा० १-५६ तिलो० प० ४-३७८ के जादिर जादिसरण के जादिसर के जादी कुलं च सिप्पं जादी सुमरणं जादे ता जादे केवलणाणे जादे पायच्छित्तं जादो लोग - लोगो जादो खु चारुदत्तो जादो सय स चेदा जादो सिद्धो वीरो जादो हुवा जा धम्मो जिदिट्ठ पिच्छयपहे जाघे पुण उवसग्गे जामण गंथं छडइ जाम छंड गेहूं जामण भावहि जीव तुहुँ जाम र सिढिलायंति न जाम रंग हराइ फसाए जाम विप्पो कोई भ० श्रारा० ८६६ तिलो० प० ४-५०७ जावइयाई तराई जावइयाई दुक्खाई Grater कर दोसा जानइया वयणवा X | जावई (दि) या वयणवहा x जा वग्गणा उदीरेजावज्जीवं सव्वाजाव ण जाणइ अप्पा जाव ण तवग्गितत्तं जाव ण भावइ तच्चं जाव ण वाया खिप्पटि जाव ण वेद विसेस + जाव ण वेद विसेस - + तिलो० प० ४-१४७४ जावा अविसुद्धा तिलो० १० ४-५२५ | जावदिय जंबुगेहा भ० श्रारा० १०८२ परि० २६ भ० थारा० २०४३ रिहस० २५६ | जावदिय अनुभवणा जावदियं आयासं धारा० सा० ३२ | जावदियं उद्देसो भावसं० ३६३ जावदियं पञ्चक्खं जोगसा० २७ | जावदियाइं कल्लाश्रारा० सा० २७ | जावदियाई सुहाई जाव दिया उद्धारा श्रारा० सा० ८३ | जावदियाणि य लं ए श्रारा० सा० ३७ परम० प० २-१६४ तिलो० प० ४-३८० तिलो० प० ४-२१५३ मूला० ४५० तिलो० प० ३-२४० तिलो० प० १-७४ तिलो० प० ४ ७०३ छेदपिं० १२५ पंचस्थि० ८७ वसु० सा० ४८४ वसु० सा० २४८ वसु० सा० ४८६ मूला० ३३६ पंचत्थि० १३० पवयणसा० २-२७ जा रायादि-रिणयन्ती जा रायादि-रिणयन्ती # जा रायादि-गियत्ती | जावदिया परिणामा जावदिया रिद्धी ज जाव दु आरण अच्चुद जाव दु केवलरणास्सुजादु विदेहवंसो जादु विदेहवंसो जाव [दु] धम्मं दव्व चसु० सा० २६२ तिलो० प०८-१६६ जालस्स जहा अं भ० धारा० १२७५ जा (जॉ) वइ गाणि उवसमइ परम० प० २-४३ भ० श्रारा० ६६२ मूला० ७०७ भ० श्रारा० १९८० शियमसा० ६६ मूला० ३३२ भावस० ६२३ यिमसा० ४७ भ० श्रारा० ८०० भ० थारा० ८५३ सम्मइ० ३-४७ गो० क० ८६४ कसायपा० २२६ (१७३) भ० श्रारा० ७०४ रयणसा०८६ धारा० सा० १०० भावपा० ११३ भ० श्रारा० २०१६ तिलो० प० ६-६२ समय० ६६ छेदपिं० ३५४ जबू० प०३-१३३ जवू० प०३-१३२ दव्वस० २७ मूला० ४२६ तिलो० सा० ५२ भ० प्रारा० १८२६ भ० श्रारा० १७८५ मूला० १०७७ जबू० प० ११-८७ छेदस० ६० भ० धारा० १६३६ मूला० ११३२ भावति० १८ जबू० प० २-७ जबू० प० २-१२ तिलो० ० प० ६-१८
SR No.010449
Book TitlePuratan Jain Vakya Suchi 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1950
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size33 MB
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