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________________ १०८ जम्हा पंचविहाचारं जहा विदि कम् जम्हा सुदं वितक + जम्हा सुटं वितक्कं + जहा सो परमसुही जम्हा भावा जहि गुणा विस्ता जहि य जहि य काले जहिय लीगा जीवा जहिय वारिमेत्ते जहि विमाणे जादो जय जिवरिंदो कम्मबंधा जय जय मरण] मारणो जयवंत जयकित्ती मुणिसुव्वयजय-जीव-द- वड्ढाजय विजयवइजयंती जयसेणचक्की जया (दा) विमुंचए (दे) चेया (दा) जरइ र मरण संभवड जर - उद्द (उब्भि) सेय- अंडय जर जोवर जीवउ मरणु जर मरण - जम्म- रहिओ जर - मरण - जम्म- रहिया जर-रोग-सोग-हीणा जर-ग्रणी चंपइ जर-वाहि-जम्म-मरणं जर - वाहि-दुक्ख - रहियं जर-सूलप्पमुहा जर-सोय-वाहि-वेयणजलकंतं लोह्रिदयं जलगव्भजपज्जत्ता जलगंधकुसुम तंदुल - जलगंधकुसुम तंदुल - जल - चंदरण-ससि-मुत्ताजलजंघा फलपुष् जल स्वरविहय केसरिजलणिहि-सयंभुरमणे जलतंदुल पक् जलथलश्रायासगढ़ पुरातन - जैनवाक्य-सूची मूला० २१० जलथलयायासयले मूला० ५७८ | जलथलग्वगसम्मुन्छिम भ० आर० १८८१ जलथलगव्भयपचत्त भ० चारा० १८४ धम्मर० १२४ जलथल हयल संगय जल-थल - सिहि-पवणंबरजलधारा जिपयगयड जलधाराणिक वे लहिसा० ३५ गो० क० ६६६ जं० प० १३ – २७ | जलाडिगए तम्मित्रि मूला० ११५ | जलपुष्फक्लयसेसाभ० श्रारा० १३८ | जलबुदबुद सक्कधर मूला० १०४६ तिलो०प० ६-७६ जलवुच्चय-सारिन्चं जलयर-कन्छ - मंडूकजलयरचत्तजलोहा जलयरजीवा लवणे रिहस० २५४ सुदख०६१ तिलो० प०४-१५७८ | जल-वद- मंतेहि हवे वसु० सा० ५०० | जलवरसाजायाई जंव० प० ११-१६७ जलसिहरे विक्खंभो तिलो० प० ४ - १२८४ जलसिंचरण पर्यारणहलगु जलहर पडलसमुच्छि जलिटो हु कसायग्गी जलिया लिंगियढड्ढ़ा जलमलमइ लिगा जल्लमल लित्तगत्तं जलमल लित्तगत्तो जवृ० प० २-१६२ | जहवि लित्तो देहो श्रारा० सा० २२ | जले मइलिदंगा बोघपा० ३० जल्लो सहि सव्वो सहयोघपा० ३७ | जवणालिया मसूरि तिलो० प० ४ - १०२३ जवणालिया मसूरी :भावसं० ५१२ | जबसालि उच्छु पउरो तिलो० प० ८ - १६ जवसालिवल्ल उरो समय० ३१५ | पाहु० दो० २४ भावसं० २०४ सुप्प० दो० २५ गाणसा० ३३ | सिद्धभ० ११ मूला० १०८६ | जसकित्तिपुराणला हे तिलो० प० १-७२ जसकित्ती बंधंतो तिलो० प० ७-४६ | जसणाममुच्चगोदं भ० श्रारा० ८३१ जसबायरपज्जत्ता तिलो० प० ४-१०३३ श्राय० ति० १-३० जंबू० प०२-१७१ ज जसहर सुभद्दरणामा जसहररायस्स सुता जसु प्रभंतरि जगु वसइ जसु कारण धणु संचियइ मूला० ४४८ | जसु जीवंत मरणु मुवर मूला० ४२७ धम्मर० १०६ मूला० १०८४ मूला० १०८५ प्राय० ति० मह भावपा० २१ सावय० ० १८३ मु० सा० ४८३ श्राय० ति० १६-२१ छेदपिं० ३१६ बा० अ० ५ कत्ति० श्रणु० २१ तिलो० प० २-३२६ तिलो० प० ४-१६४६ तिलो० सा० ३२० छेदपिं० ३०२ भावसं० १२१ निलो० प० ४-२४४६ परम० प० २-११६ तिलो० प० ८-२४७ भ० श्रारा० २६६ रिट्टस० १६४ घम्मर० १८७ जोगिम० १३ कत्ति० प्र० ४६१ भ० श्रारा० ६१ मूला० ८६४ वसु० सा० ३४६ मूला० १०६१ पंचसं० १-६६ जबू० प० ७-३६ जंबृ० प० ६-५६ ग्यणसा० २७ पचसं० ४-२५४ कसायपा० २१२ (१४६ ) पंचसं० ५ - ११० तिलो० सा० ४६६ व्विा० भ० १८ परम० प० १-४१ सुप्प० दो० ३३ पाहु० दो० १२३
SR No.010449
Book TitlePuratan Jain Vakya Suchi 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1950
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size33 MB
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