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________________ १०४ जइ एरिसो विमूढो एरिस विलो लोहिज्जो पुरातन जैनवाक्य-सूची धम्मर० १०५ घम्मर० १०१ वसु० सा० ३०६ भावसं ० ६७ भावसं ० ३२ सम्मइ० २-२३ श्राय० ति० ४-१ श्राय० ति० १५-२१ भावसं० १७१ जइ एवं जइ एवं तो इत्थी अइ एवं तो पिरो अइ श्रग्गहमेतं दंas he faceओ जइह माओ जइ कह कि कसायग्गीash वितत्थ गिइ इह वियाई हु जर कह वि हुंति भरिया as किरा कर लं इको विउरिए जइ खरिणयतो जीवो जइ खाइयसट्ठी जह गित्थु दाणेण विणु as गिवंतो सिइ जई चितहिं सुप्पहु भाई जइ चेयरणा णिच्चा जइ जर मरण - करालियउ जइ जलहाणपउत्ता जई जिय उत्तमु होइ वि जइ पउम दिगाहो जइ पढमतइज्जेहिं श्राय० सि० ८-६ रिहस० ११ वसु० सा० १३८ | जइ पढमतइयवग्गक्खभावसं० ६४ आ पढमतइयवरणा वसु० सा० २१५ | वह पष्ठमतइयवरणा सावय० दो० ८७ चिदिदमश्र जह पावर उच्चत्तं जई पिच्छर गयरगतले भाव० ६८ | जइ पिच्छर गहु वय जोगसा० ४६ जइ पुज्जर को विरो जइ पुण केण वि दीसर भावसं० १०२ सुप्प० दो० ७५ भावसं ० १८ परम० प० २-४ जई जिय सुक्खहँ अहिलसहि सावय० दो० १२२ जइ जीवेण सह च्चिय ज जुत्तो दिट्ठो वा as fuaat महापा जइ विकु च्छेद जाणे विसो जर म्मिल अप्पा मुखइ जम्मिनु अप्पा मुगहि जइ विसद्धु विकु विकरइ जर तप्पइ उग्गतवं जर ता धारावडा (2) जइ विजय- पालरणत्थं जइतुपं गवणीयं जर ते हवंति देवा जइ ते होति समत्था भू as fro पथ ( थी) घरि वसइ तो भ० श्रारा० २६३ भावसं० ५६ जोगसा० ३७ परम०प०१-११४ भावसं ० ६२ जइ दंसणेण सुद्धा जहदा उच्चत्तादि रिणजइ दा खर्डालोगे - जई दिए दह सुप्पहु भइ जइ दीसइ परिपुर जइ दे कदा पमाणं जइ देखेर छड्डियउ जइ देवय देव सुर्य जइ देदि तत्थ सुरहरजइ देवो व जइ देवो हरिण रक्खइ जंबू० प० ४-२८० जइ पुण सुद्धसहावा जर पुत्तदिदाणे समय ० ० १३६ जइ फलइ कह वि दा श्राय० ति० १८-२४ जइ वद्ध मुक्क मुहि भावसं० २३८ जइ बंभो कुरणइ जयं समय ०२५६ जइ बीहउ चउगइगमरणा (पु) सीलपा० ३१ जइ भइ को वि एवं जोगसा० ३० जर भाविज्जइ गंधे जया इमेण जीवेजइया तव्त्रिrate भावसं० २३१ जया दहरहyat भावसं० २३६ जया मणु ग्गिंथु जिय धम्मर० ११५ जया स एव संखो ● भावसं० ७८ ज रायेण दोसे जद्द लद्धर माणिक्कडउ जइ वग्गपदमवण्णा भावसं ० २१६ सुप्प० दो० ४० 1 - ज सुत्तपा० २५ भ० प्रा० १२३६ भ० भा० ७७२ सुप्प० दो० २७ रिट्स० १०५ भ० श्रारा० ६३५ सावय० दो० ३६ भावस० ७६ वसु० सा- १२० कत्ति० अ० २५ ' भावस० ४३ दंसणसा० ४३ आय० ति० ६-११ श्राय० ति० ६-१ श्रा० ति० ६-८ श्राय० ति० १७-५ मूला० ८६८ घस्मर० ८२ रिट्स० १०० रिस० १४ कत्ति० भावसं० ४४६ वसु० सा० १२२ ० अणु० २०० भावस० ३३ भावसं० ४०२ जोगसा० ८७ भावसं० २०४ जोगसा० ५ भावसं० ३८६ भ० धारा० ३४२ मरिण को करिवि कलहीजइ पाहु०दो० १४० जमे होई मरणं वसु० स० १६८ समय० ७१ देव्वस० णय० ३७१ भावसं० २२६ जोगसा० ७३ समय ० २२२ चारि० भ० ६ पाहु० दो० २१६ श्राय० ति० ५-६
SR No.010449
Book TitlePuratan Jain Vakya Suchi 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1950
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size33 MB
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