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________________ 1 દ૬ धियसामाचारो ओघे आदेसे वा श्रघे चोदसठाणे श्रघेणालो चेदि हु श्रोघे मिच्छदुगे विय श्रघे वा आदे जस्सी तेजस्सी श्रदइए थी संढं खलु भावो श्रदइया चक्खुदुगं श्रदइया भावा पुण द उसमित्रो श्रदयियं उवसमियं दरिया पुरा भावा दरकोप दरको पढ पुरिसपढमे दरमापढ दरमाणप दरबार पढ दरमायाप दरम दरहुमादी श्रदरहुमादी दो श्रोमोदरिए घोरा दुगे वज्जे ओरालमिस्सकम्मइयराल मिस-कम्मे ओराल मिस्स कम्मे रालमिस्स-कम्मे श्ररालमिस्सजोए ओरालमिस्साजोगं ओरालमिस्साजोगे ओराल मिस्स तसवहराल मिस्स सारणे ओरालं तम्मिस्सं रालं तम्मिस्सं ओराल दंडदुगे श्ररालं पज्जत्ते ओराल वा मिस्से पुरातन जैनवाक्य सूची मूला० १२६ | ओरालाहारदुए गो० जी० ७२६ गो० जी० ७०६ भ० श्रारा० ५३४ ओरालिए य तेरस लिओ देहो ओरालि आहार ओरालिय उज्जोवं ओरालिय उत्तत्थं भ० श्रारा० ४७८ ओरालिय तम्मिस्सं ओरालियमस्सं वा भावति० ६७ भावति० २७ | श्रोरालियवेगुब्वियभावति० ३४ | श्रोरालियवेगुब्वियभावति० ६८ श्रगलियवेगुब्वियदव्यस० य० ७५ | ओरालियवेगुब्वियद्रव्वस० णय० ३६७ ओरालियवरसचं गो० क० ८१८ | ओरालियंगवंगं :लद्धिसा० ३१८ | ओरालिय गांगं x लद्धिमा० ३११ ओरालियगवंगं ** द्धिसा० ३२० | ओरालियगवंगं x नद्धिसा० ३१६ ओरालियंगवंग लद्धिसा० ३१७ | ओरालिये सरीरे लद्धिसा० ३१३ | ओराले वा मिस्से लद्धिसा० ३१४ | ओलगसालापुरदो दिसा० ३१५ | अलगमतभूसणदिसा० ३१० प्रोल्लं सत वत्थं लद्धिसा० ३४१ श्रोट्टणमुचवट्टण भ० प्रा० १५०४ | श्रवट्टरणा जहरणा गो० क० ४२५ ओवट्टेटि ठिदिं पुण सिद्धत० ६१ ओसरणा सेवरणाओ पचसं० ४ - ११ | श्रोसहरणयरी तह पुडपचसं० ४-५६ | श्रसहाणेण परो पचसं० ५-१६५ साय हिमग महिगा पचस० ४-३५७ | श्रमाय हिमय महिया पत्रस० ४- १७४ | ओहिट्ठाणं चरिमे गो० क० ३५३ | हिट्ठाणं जंबूगो० क० ७६० (क्षे० ४) हिदुगे बधतिय श्रास० ति० ४० | हिमरणपज्जवाणं श्रास० ति० ४६ | श्रोहिमणपज्जवाणं श्रास० ति० = | ओहिरहिदा तिरिक्खा गो० क० ५८७ | ओहि पि विजारांतो गो० जी० ६७६ ओही- केवल दसरणभावति० ८१ हीदंसे केवल गो० जी० ७०७ गो० क० १०५ | श्रो पंचस ४-४३ सिद्धत० १४ पवयासा० २-७६ पंचसं० ४-८१ पंचमं० ४-४६६ गो० जी० २३० सिनंत० २६ गो० जी० ६८३ गो० जी० २४३ कम्मप० ६८ गो० क० ८१ कम्मप० ७३ गो० जी० २५५ पंचस० ४-२६१ पंचसं० ४ -२७६ पंचस ५-५८ पचसं० ५-७२ पचस० ५-१२६ कसायपा० १ (१३५) गो० क० ११६ तिलो० प०३-१३ तिलो० प० ४-८१ भ० श्रारा० २११३ कसायपा० १६१ (१०८) कसायपा० १५२ (६६ ) कमायपा० १५८ (१०) भ० श्रारा० १३६४ तिलो० प० ४-२२६२ भावसं० ४६६ मूला० २१० पंचसं० १७८ तिलो० ० सा० १४६ श्रगप० १-३२ गो० क० ७३० तिलो० प० ४-६६७ गो० क० ७१ गो० जी० ४६१ तिलो० प०३-२३४ गो० क० ७३ पचसं० ४-३४
SR No.010449
Book TitlePuratan Jain Vakya Suchi 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1950
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size33 MB
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