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________________ • श्र यस्य पढ अणियां कररणाम किरण पढमा किरण पढ श्रणिट्टगुट्ठाणे यिट्टिवरिमठाणा यदि दुग-दु-भागे यिाियरे थी मि विप्पा यियि मत्तरसं श्रयिट्टिय संखगुणे श्रयिट्टिदयभंगा यदुवंध यस्य पढ यिहिं मिच्छाई यी श्रद्धा ट्टी बंध त संखेन अणियाण य सत्तरह य अणिया य सत्तरह य लिदिसामु सूकरसिहं पुरा दुवि अणिहुनपरगद ह्रिदया दिमसाइदियअमिसा दे कट्टपदे दे अणुकंपा कहा य कपा कहा य अनुकंपा सुद्धवकूल परिणयं अणुकूला परिकूला अणुकुलो समरजय खधवियपेण दु अगामी सादिसु गुरुचाववि अगुरुदेहपमाण अगुरुदेहपमाणे प्राकृतपद्यानुक्रमणी 劈 लद्धिसा० ४०८ गुणासिया उ भ० थारा० २०६४ | सियाय पुणे गो० क० ४८३ | गुनशुकरण अणिमा लद्विसा० ११८ अणुदयतदियं गीघमगो० क० ३६२ | अणुदयसव्वे भगा गो० क० ३८६ अदिस अणुत्तरेसु हि भाव० ३८ श्रदिसणुत्तरदेवा पंचस० ५-४८६ दु एहिं वे पचस० ५ - ३६५ अणुपणा अपमाण य पचमं० ५-३७३ | प्रणुपरिमाणं तच्चं सि० ६५ पालिस एवं पचस० ५- ३५८ अणुपालिदा य आणा पत्रसं० ५-४०६ श्रगलिदो य दीहो लद्विसा० २२४ अणुपुत्रमपुत्र पचसं० ४- ३६५ | अणुपुत्रीसंकमण द्विसा० ११३ अणुपुत्रेण य ठविदो गो० क० ६५४ | अणुपुव्वेणाहारं द्विमा० ११५ | श्रणुपेहा बारह वि जिय जवृ० प० ११–२४० अणुद्धतवो+म्मा जवृ० प० ११-२४२ | अणुवधरोस विग्गहतिलो० प० ४-२७२५ अणुभयगायतरजं मूला० ४४४ | अणुभयवचि वियलजुदा भ० श्रारा० ६६० | श्रणुभयवयरोग जु भ० श्रारा० १८३८ | अणुभाग पदे माइ पुछिय गुरु मूला० ७३२ | अणुभागाणं वधज्मगो० क० ६०६ | अणुभागो पयडीगं छेदस० ११ अणुभासदि गुरुवयण छेदपिं० ३५७ अमइ देइ भ० श्रारा० १८३४ | अणुमा भावसं० ४१३ राहा पुस्से श्राय० ति० २-३३ राहा से श्राय० ति० २-२१ | अलोमा वा सत्तू णियम० २० | अणुलोहं वेदतो अगप० २-७३ | अलोहं वेदंतो जबू० प० २-३० | अलोह वेयंतो ०४८ | लोह वेयंतो अणुवत्तणाए गुणवत्तपंचसं० १–१२४ | अणुवदमहव्वदेहिं दव्वस० १० गोगामी अणु जह जगह वि अहिययरु परम० प० २ - ६ अणुवदमव्वदेहिं अासिएस उत्तर- श्राय० ति० १६-११ अणुवमममेयमक्खय हे श्राय० ति० १६-६ थाय० ति० १८-६ तिलो० प० ४ - १०२४ गो० क० ३४१ पचसं० ५-३४० भावसि० ७७ मूला० १२१८ सम्मइ० ३-३६ तिलो० प० ६-८१ कत्ति० श्रणु० २३५ वसु० सा० ४६४ भ० श्रारा० ३२६ • भ० थारा० १५४ कसाय० ३६ लद्धिसा० २४७ भ० श्रारा० ६६६ भ० श्रारा० ७२ गो० जी० ६० गो० जी०, ४७३ Pr भ० श्रारा० २४७ पाहु० दो० २११ मूला० ८२६ भ० श्रारा० १८३ हिसा० २४५ गो० क० ३११ सिद्धत० २३ तिलो० प० १-१२ गो० क० २६० श्रगप० २-६२ मूला० ६४१ सावय० दो० १६ भ० श्रारा० ५७२ तिलो० प० ४-६५१ तिलो० प० ४-६५० चसु० सा० ५२३ पचस० १-१३२० भ० श्रारा० ६६८ गो० क० ८०७ कम्मप० १५२ भ० श्रारा० २१५३
SR No.010449
Book TitlePuratan Jain Vakya Suchi 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1950
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size33 MB
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