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________________ अकसाय कसायाण अकसायत्तमवेदत्तसायं तु चरितं ट्टिमा हरा ट्टिमा हिरणा अक्वराड वा अक्खर - अणक्खर भए अक्खर - अणक्खरमए अक्खर आलेक्खेसुं अक्खरचडिया मसि मिलिया अक्खरडे हि जगव्त्रिया अक्रपिंडं विउ अक्खर मत्ताही अक्खलियरणारण दसरण गिहत्थमिस्सलिए अगुरुगलहुगुवघां अगुरुगलहुगुवघार्थ गुरुगलहुगेहिं सया अगुरुयतुरुक्कचंदरणअगुरुयतुरुक्कचंदरण पुरातन जैनवाक्य-सूची अगुरु लहुगुवघाया गुरुयलहुतसवायरअगुरुयलहुपंचिंदियअगुरुयलहुयच उक्कं अगुरुयल हुयच उक्क अगुरुयल हुयच उक्कं अगुरुयलहुयचक्कं अगुरुयलहुयं तसवा लद्धिसा० ४६२ अगुरु लहुयं तसवा भ० श्रारा० २१५७ | अगुरुल हुगउवघादं मूला० ६८२ णयच० २७ अट्ठ य दव्वस० णय० १६६ | अग्ग पच्छई दहदिहहिं वसु० सा० ३८४ | अग्गमगि सुभद्दो तिलो० प० ४-६६३ अग्गमहिसि तिलो० प० ४-६८४ | अग्गमहिसि श्र तिलो० प० ४-३८४ अग्गमहिसीण समं पाहु० दो० १७३ अग्गलदेवं वंदमि पाहु० दो० ८६ seite वत्थुण पि रिठ्ठस० १६१ गायणीयामं सुदखं० ६३ | श्रग्गिकुमारा सवे गतिकोणो रत्तो अग्गितयंगुलमाणो अग्गिदिसाए सादी गो० क० १४ कम्मप० १४ मोक्ख पा० ५ | अग्गिदिसादिसु सक्कुलिश्रग्गिदिसादो चउ चउ अग्ग यावदि सोमो परिक्तादो श्रग्गिभया धावंता गिल्लं मग्गिल्लं अगुरुलहुगा ता अगुरुलगा अरणता तिलो० प० ७-१ अक्खाणं श्रणुभवण अक्खाणं श्रणुभवणं अक्खाणि बाहिरप्पा अक्खा मरणवचिकाया महारणसिया हिरो रहि क्खो मरणमेत्तं तिलो० प० ४-४१२ तिलो० प० ४-८५५ वसु० सा० ६६ मूला० ८१५ पाहु० दो० १६६ पाहु० दो० १७१ खइ गिरामइ परमगइ खइ गिरामइ परम गइ अखलिदममिडिदमव्वाअगणित्ता गुरुवयां भ० श्रारा० ६५२ वसु० सा० १६४ अगहिदमिस्सं गहिदं गो० जी० ५५६ - ० २ विस किएहसप्पा अग्गविचोरसप्पा अग्गिविमसत्ता अग्गीवाणामो अग्गी विउहिदुजे अग्गी विय होदि हिमं मूला० १६१ पंचसं० ४-२६२ पंचसं० ५ - ८५ | अग्गीसारण कूडे पंचत्थि० ८४ अग्घविसेसे लद्धं जंबू० प० ५ - ८० अघसे समे सिरे जंबू० प० ११-२५० अचक्खुरस श्रोघभंगो पंचस० ४-४५ अचतयवग्गा चउरो पंचसं० ५- १२३ | अञ्चब्दइट्ठिजुदा पंचसं० ५-१६६ | अञ्चलपुरवरणयरे पंचसं० ३-६२ | अञ्चित्तदेवमाणूसपचस० ४-२६१, २७० चित्ता खलु जोगी पंचसं० ४-३६५ ची चिदमालि ग पंचसं० ५-५५ ७६३ |अच्ची य अश्विमालिंगि पंच०५ - १३७ | अच्चदणामे पडले श्र पचसं० ५-१५८ कम्मप० १५ दव्चस० गाय० २१ पंचथि ३१ पाहु० दो० १७५ श्रगप० ३-४७ तिलो०प०८-३८० तिलो० प० ८-३७६ तिलो० प० ३ - ६१ णिव्वा० भ० २४ अंगप० २-३६ सुद० ८२ तिलो० प० ३-१२१ छाणसा० ५७ पाणसा० ५५ तिलो० प० ४-२७७७ तिलो० सा० ६१८ तिलो० सा० ६२८ तिलो० सा० ४३४ भ० श्रारा० १३२२ तिलो० सा० १८८ रिट्स० २०५ भ० श्रारा० ७२६ वसु० सा० ६५ भ० श्रारा० १५६६ तिलो० प० ३-१६ भ० श्रारा० ६८८ कत्ति० श्र० ४३१ तिलो० सा० ६४१ श्राय० ति० १७-२० भ० श्रारा० ६४१ पंचसं० ५-२०१ श्राय० ति० १-२२ जबू० प० ११-३०८ णिव्वा० भ० १६ मूला० २६२ मूला० ११०० जवू० प० ११-३३८ तिलो० सा० ४५६ तिलो० प०८-५०५
SR No.010449
Book TitlePuratan Jain Vakya Suchi 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1950
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size33 MB
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