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________________ ५. उपसंहार और आभार इस प्रकार यह सब उन मूलग्रन्थों तथा उनके रचयिता आचार्यादि ग्रन्थकारोंका यथावश्यक और यथासाध्य संक्षेप - विस्तार से परिचय है जिनके पद-वाक्योंको प्रस्तुत सूची (अनुक्रमणी) में शामिल अथवा सग्रहीत किया गया है. 1 अब मैं प्रस्तावनाको समाप्त करता हुआ उन सब सज्जनोका आभार प्रकट कर देना अपना कर्तव्य समझता हॅू जिनका इस ग्रन्थके निर्माणादि कार्यों में मुझे कुछ भी क्रियात्मक अथवा उल्लेखनीय सहयोग प्राप्त हुआ है । सबसे पहले मैं श्रीमान् साहू शान्तिप्रसादजी और उनकी धर्मपत्नी श्रीमती रमारानीजीका हार्दिक आभार प्रकट करता हूँ जिन्होंने इस ग्रन्थके निर्माण और प्रकाशन-कार्य में अपना आर्थिक सहयोग प्रदान किया है । तत्पश्चात् अपने आश्रम वीरसेवामन्दिर दो विद्वानो न्यायाचार्य पं० दरबारीलालजी कोठिया और प० परमानन्दजी शास्त्री के प्रति भी मैं अपना आभार प्रकट करता हूं जो ग्रन्थ के संशोधन-सम्पादन और प्रूफरीडिङ्ग आदि कार्योंमे बराबर सहयोगी रहे हैं। साथ ही आश्रमके उन भूतकालीन विद्वानो पति ताराचन्दजी दर्शनशास्त्री, प० शकरलालजी न्यायतीर्थ और पं० दीपचन्दजी पाण्ड्या को भी मैं इस अवसर पर नहीं भुला सकता जिनका इस ग्रन्थ में पूर्व-सूचनानुससार प्रेसकापी आदिके रूपमें कुछ क्रियात्मक सहयोग रहा है, और इसलिये मैं उनका भी आभारी हूँ । प्रोफेसर ए० एन० उपाध्येजी एम० ए०, डी० लिट० कोल्हापुरने इस ग्रन्थकी अग्रेजी प्रस्तावना ( Introduction ) लिखकर और समय- समयपर अपने बहुमूल्य परामर्श देकर बहुत ही अनुग्रहीत किया है, और इसलिये उनका मैं यहांपर खासतौर से आभार मानता हूँ । भूतबलि-पुष्पदन्ताचार्यकृत पट्खण्डागमपरसे जिन गाथासूत्रों को स्पष्ट करके परिशिष्ट न० २ मे दिया गया है उनमे से दो एक तो पं० फूलचन्दजी सिद्वान्तशास्त्रीकी खोजसे सम्बन्ध रखते हैं और शेषपर उनकी अनुमति प्राप्त हुई है । अतः इसके लिये वे भी आभारके पात्र हैं । पं० कैलाशचन्द्रजी शास्त्रीने स्याद्वाद विद्यालय बनारमसे, बाबू पन्नालालजी अग्रवाल देहलीने देहली - धर्मपुरा के नये मन्दिरसे तथा बाबू कपूरचन्द ( मालिक महावीर प्रेस ) आगरा ने मोतीकटरा-जैनमन्दिरसे 'तिलोय पत्ती' की हस्तलिखित प्रति भेजकर और ला प्रद्युम्नकुमार जी जैन रईस सहारनपुर ने अपने मन्दिर के शास्त्र भण्डारसे उसे तुलना के लिये देकर और इसी तरह, श्रीरामचन्द्रजो खिन्दुका जयपुरने आमेर के शास्त्र भण्डार से प्राकृत 'पचसंहग्रह' आदि की कुछ पुरानी प्रतियॉ भेज कर तथा 'जबूदीव पण्णत्ती की प्रतिको तुलनाके लिये देकर सूची के कार्यमें जो सहायता हुहुंचाई है उसके लिये ये सब सज्जन मेरे आभार एवं धन्यवाद के पात्र हैं इसके सिवाय, प्रस्तुत प्रस्तावना के खासकर उसके 'ग्रंथ और ग्रंथकार' नामक विभाग के - लिखने मे जिन विद्वानोके ग्रंथो, लेखों, प्रस्तावना - वाक्यों आदिपरसे मुझे कुछ भी सहायता प्राप्त हुई है अथवा जिनके अनुकूल-प्रतिकूल विचारोको पाकर मुझे उस विपयमें विशेषरूपसे कुछ विचार करने तथा लिखनेकी प्रेरणा मिली है उन सब विद्वानोका भी मै हृदयसे आभारी हूं - उनकी कृतियों तथा विचारो के सम्पर्क में आए विना प्रस्तावनाको वर्तमान रूप प्राप्त होता, इसमे सन्देह ही है । 1 अन्तमें मैं बाबू त्रिलोकचन्दजी जैन सरसावाका भी हृदयसे आभार व्यक्त करता हूँ जो सहारनपुर-प्रेससे अधिकांश प्रफोको कृपया लाते और करैक्शन हो जानेपर उन्हें प्रेसका पहुँचाते रहे हैं। जुगलकिशोर मुख्तार वीरसेवामन्दिर, सरसावा जि० सहारनपुर
SR No.010449
Book TitlePuratan Jain Vakya Suchi 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1950
Total Pages519
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size33 MB
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