SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 99
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुराण और जैन धर्म दुःख नहीं प्रत्युत सुन्न होता है इत्यादि जो उत्तर ब्राह्मण समुदाय ने दिया है वह कितना युक्ति संगत और सन्तोषप्रद है इमरा विवार पाठक खुद ही करें। क्योंकि हमारी तुच्छ बुद्धि में इमरी मंगति लगाने का सामर्थ्य नहीं इसके सिवा राजा के द्वारा अपमानित हुए ब्राह्मण समुदाय की प्रार्थना पर हनुमान जी की दी। पुड़ियों से राजभवन तथा अन्य राज्य-सामग्री जलाना और पुनरुजीवित करना एवं अग्नि भय से व्यस्त हुए कुमारपाल का ब्राह्मण की शरण लेते हुए जैन धर्म को छोड़कर पुनः ब्रामण धर्म में प्रविष्ट होना आदि कहाँ तक सत्य और विश्वासार्ह है इसका भी पाठक ही विचार करें ? हमारे ख्याल में तो उक्त कथन इतिहास में बहुत पिछुड़ा हुआ है प्रथम जब तक किसी प्रबल ऐतिहासिक प्रमाण में इन्द्रसूरि नामक जैन साधु के शिष्य कुमारपाल नाम के किसी जैन राजा का कलियुग के आदि में होना सावित न हो सके तत्र तक उसके पिछलगु समाचार का कुछ मूल्य प्रतीत नहीं होता। हां श्रद्धातिरेक की बात दूसरी है। अस्तु इससे यह मालूम होता है कि स्कन्ध पुराण की रचना ने पहले जैन धर्म का प्रचार पूर्ण रूप से हो चुका था और उन पुराण यदि व्यास की रचना है तो निसंदेह मानना पंगा जि. पाज से पांच हजार पाले मंमार में पूर्ण रूप में जैन धर्म फैल चुका था। [कृर्म पुराण ] कर्म पुराण में जैन धर्म की उपनि, 'प्रथवा मिसान्त प्रादि के विषय में कुछ भी लिन्ग देखने में नही प्राना । परन्तु उसमें भार प्रकरण में लिया है
SR No.010448
Book TitlePuran aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Sharma
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1927
Total Pages117
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy