SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 97
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ पुराण और जन धर्म कुमारपाल राजा को जैन धर्म का प्रतिवांध देने वाले हमचन्द्राचार्य नाम के एक नम्बर जैन विद्वान थे इनका वि.सं. २०४५ में जन्म १९५४ में दीक्षा, ११६. प्राचार्य पद और १२३९ में शरीरान्त हुआ। ११४५ शावईश्वरं वर्षे कार्तिक पूर्णिमानिशि. जन्माभवन्प्रभो व्योमवाण शंभी बन नथा ११५० ।। ८४८ ॥ ११६६ रसपकेश्वरं मूरि प्रतिष्टाममजायत, नन्दस्य रवीवऽवसानमवभवन प्रभाः ।। ८४९ ॥ प्रभा० च० महाराजा कुमारपाल की राजधानी "अनादिलपुर पाटन" में थी और वि० सं० १२१६ में इन्होंने गुम हेमचन्द्राचार्यजी जैन-धर्म की गृहस्पटीक्षामहरण की धी अर्थान् इन समय से आप सर्वथा प्रसिद्ध रूप में जैन धर्म के अनुयायी बने । मोह पराजय नाटक में लिया है कि धर्मराज की कृपा सुन्दरी नान की कन्या ने इनका विवाह हुआ और अन्य चरित्रों में इनकी नी का नाम भोपल दीवी लिया है। इन प्रमाणो से सात होता है कि कान्यकुब्जाधीश पान और महाराजा कुमारपाल के समय में लगभग तीन शताब्दी का अन्तर है अर्धान् महाराजा घाम इतना ममय पहले और चौटक्य वंशावतंस राजा पुमारपाल पीद हुए हैं। इसलिये परन्थ पुराएका इन दोनों की समकालीन बतलाना तथा प्रामरमारी रगलाने मारपाल के विवाह का उपरना क्सिी प्रकार विधास योग्य प्रतीत नहीं होता। ___यहां पर कई एफ सजना का विचार है कि जैन-धर्म. गनिहासिक प्रन्यों में जिस आम और एनारसाल का रिफर है के
SR No.010448
Book TitlePuran aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Sharma
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1927
Total Pages117
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy