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________________ t 1 पुरान और जैन धर्म 33, यह युद्ध तीन सौ वर्ष तक होता रहा ! इनमें देव और चोंके नायक इन्द्र और प्रह्लाद का बड़ा भारी युद्ध हुआ । जब इन दोनो मे से कोइ हाग नहीं तव देव और दानवों ने घाजी के पान जाकर पूंछा कि इन दोनों में से किसकी विजय होगी। इसके उत्तर में ब्रह्माजी ने कहा कि जिन पक्ष की ओर होगा उनकी जयं होगी । यह सुन दोनों ही दल के लोग राज के पान गये और अपनी सहायता के लिये प्रार्थना की। के "जि" ने कहा कि में उस पत्र की धार हूँगा जी नायक बनायेगा | बान पर यर तो नहमत नहीं परन्तु देवी ने इसकी सीकारकर लिया । रजि के देव सेना के नाय होने के बाद फिर युद्ध इम हुआ। बस फिर क्यामरने उन असुरो का भी विनाश कर दिया जिनरा वध करने मश्रण था। रजि के कर्म से प्रसन्न 1 कृति पुन बन गया । रजि ने भी इन्द्र को राज्य कर स्वयं जगल का राम्ना लिया। इधर गंजे के पुत्र को यह बात हुई। उनि जवरदस्ती से उनका राज्यहीन लिया। मे हुआ उन्द्र देवगुरु और कहने लगा कि पति के पार विविया रजि के पुत्रों ने बहुत ही किया है मे। सम्पूर्ण राज्य ले लिया और नल का भाग भी मुझे नही मिलता। इसलिये मुके राज्य मिले इसके वाले या कोई न कर शान्ति र पुष्टि फर्म के विधान द्वा ዛ सुन प्रहस्पति ने वान और नामी बनाया तथा स्वयं रजि इन्द्र को फिर से पुत्रों के पास जारी वैद वा जिन धर्म का उपदेश कर दो
SR No.010448
Book TitlePuran aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Sharma
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1927
Total Pages117
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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