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________________ · पुराण और जैन धर्म દર लिये उसके मत विशेष का निश्चय होना कठिन हैं । अतएव शिव पुराण के इस परस्पर विरोधी लेख की समस्या लगानी भी मुश्किल है।. ऐतिहासिक दृष्टि से विचार करते समय तो हम इसी नतीजे पर पहुंचते हैं कि शिव पुराणका यह लेख जिसने लिखा है उसकी चार्वाक बौद्ध और जैन मन के पौर्वापर्य और परस्पर भेद की तमीज नहीं थी । अन्यथा वह इतनी भूल न करता ! चार्वाक, जैन और बौद्ध को एक ही समझना निम्संदेह भूल है ! हां वेद मत के साथ विरोध रखने से ही विचार माला में पिरो देना ग्रन्थकार को अभी हो तो हम विवश है । शिव पुराण के सिवा अन्यान्य पुराणों की भी बहुधा यही दशा है । उसमें भी जैन और बौद्ध के परस्पर भेद की कुछ तमीज नहीं की गई। कहीं पर तो जैन और बौद्ध को भिन्न २ अवतार माना है कहीं पर जैन से बौद्ध और बौद्ध से जैन मत की उत्पत्ति का उल्ले किया है। एवं किसी पुराण मे तो जैन और बौद्ध का उत्पादक एक ही पुरुष को बतलाया गया है कहने की आवश्यकता नहीं कि इस दशा में हम किस परिणाम पर पहुँचते हैं । [ असभ्य श्राक्षेप ] शिव पुराल की इस लेख माला में उक्त मुनि- जिमं विष्णु भगवान् ने त्रिपुरासुर के विमोहनार्थ उत्पन्न किया के उपदेश पर एक बड़ी ही विचित्र बात कही है। यात क्या है इस व्याज ने जैन और बौद्ध मत पर बड़ा ही अनभ्य आक्षेप किया है । पाठको को इस बात के यतलाने की अब तनिक भी आवश्यकता प्रतीत
SR No.010448
Book TitlePuran aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Sharma
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1927
Total Pages117
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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