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________________ ६० पुराण और जैन धर्म पुराणों-पुराणस्थ लेखो की अपेक्षा कुछ नई और विस्मय-जनक होने के साथ २ ऐतिहासिक दृष्टि से भी कुछ काम की हैं। शिव पुराण के इस विस्तृत लेख का संक्षेप से सार अंश; इतना है कि दैत्यों से दुःखी हुए, देवता लोगों की प्रार्थना और शिवजी की प्रेरणा से विष्णु भगवान् ने मायास्वरूप एक पुरुष विशेष को उत्पन्न करके उसे त्रिपुर वासियों को वेद मार्ग से भ्रष्ट करने का आदेश दिया । विष्णु भगवान की इस आज्ञा को पाकर उस पुरुप ने अपने जैसे चार शिष्य और पैदा किये-बनाये । परन्तु शिवार्चन के प्रभाव से त्रिपुर में उस पुरुष को अपने कार्य में सफलता प्राप्त न हुई ! तव विष्णु ने उसकी सहायता के लिये नारद को भेजा । नारद की सहायता से उसने फिर अपना कार्य शुरू किया और त्रिपुर नरेश तथा उसकी निखिल प्रजा को बहुत शीघ्र ही वैदिक धर्म से सर्वथा विमुख-विचलित कर दिया ! बस इसके सिवाय अन्य जो कुछ लिखा है वह इसी का विस्तार मात्र है। . उक्त पुरुष के मत का विचार । सव से पहले हमें इस बात का निर्णय करना बहुत जरूरी है कि विष्णु भगवान् ने जिस माया रूप पुरुष विशेष को उत्पन्न किया वह कौन था। इसके निर्णय करने के लिये शिव पुराण के उक्त लेख का मनन करना बहुत आवश्यक है । उसमें उक्त पुरुप के वेप और उपदेश, दोनों का ही उल्लेख किया गया है। परन्तु त्रिपुराधीश के समक्ष उस मुण्डी पुरुप के मुख से जो उपदेश दिखाया है उससे तो उसके किसी मत विशेष का पता नहीं चलता किन्तु उसके वेप का imate
SR No.010448
Book TitlePuran aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Sharma
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1927
Total Pages117
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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