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________________ __ . पुराण और जैन धर्म उल्लेख ही हैं। उदाहरणार्थ आग्नेय पुराण में से कुछ लेख यहां पर उद्धत किया जाता है पाठक उसे खूब ध्यान से पढ़ें ? तथाहि अग्निरुवाचवो बुद्धावतारं च पठतः श्टणुतोऽर्थदम् । पुरा देवासुरे युद्धे दैत्यैर्देवाः पराजिताः ॥१॥ रक्ष रक्षेति शरणं वदन्तो जग्मुरीश्वरम् । मायामोहस्वरूपोऽसौ शुद्धोदनसुतोऽभवत् ॥२॥ मोहयामास दैत्याँस्तान् त्याजता वेदधर्मकम् । तेच बौद्धा वभूवुर्हि तेभ्योऽन्ये वेदवर्जिताः ॥३॥ आहेतः सोऽभवत्पश्चादाहतानकरोत्परान् । एवं पापारीडनो जाता, वेदधर्मादिवर्जिताः॥ [अग्नि पुराण अध्याय ४९] (आनन्द आश्रम सिरिझ का अग्नि पु० अ० १६शोक. १-४) आलोचक-- पाठको ने जैन धर्म के विपय में श्रीमद्भागवत के अनन्तर अग्नि पुराण के कथन को भी सुन लिया ? कथन, एक से एक बढ़कर है। अनि पुगण के ऊपर दिये ग्रोकों का तात्पर्य इस प्रकार है-घनिदेर बोले, कि घर में युद्ध के प्रबनार को रहता है। यह पढ्ने घोर मुनने में मन.. कामना पूर्ण करने वाला है। पूर्व शिसी समय में देवों और दैन्यों का यहाभार्ग गुहला उसमें देवता लोग दैत्यों से हार गये। वे सब मिलकर अपनी रक्षा के
SR No.010448
Book TitlePuran aur Jain Dharm
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHansraj Sharma
PublisherAtmanand Jain Sabha
Publication Year1927
Total Pages117
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size4 MB
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