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श्री कृष्पमाचा रियर के अनुसार एक बार सोमचन्द्र ने शक्ति प्रदर्शन के लिये अपने बाहु को अग्नि में रख दिया। लेकिन आश्चर्यजनकरूप से सोमवन्द्र का जलता हाथ सोने का बन गया। इस घटना के पश्चात् सोमचन्द्र हेमचन्द्र के नाम से प्रसिद्ध हो गये।
डा. मुसलगांवकर ने कुमारपाल प्रबन्धादि के निर्देशानुसार तथा ज्योतिष की काल गफ्नानुतार (माघशुक्ल चतुर्दशी, शनिवार को वि. Ho || 54 में) बतलाते हुए, चांगदेव का दीधासंस्कार तुर्विध संघ के समक्ष स्तम्भतीर्थ के पार्श्वनाथ चैत्यालय में देवचन्द्राचार्य द्वारा चाचिग की उपस्थिति में ही होना सिद्ध किया है। साथ ही कर्णावती के स्थान पर "खम्भात" में ही दीक्षा हुई - ऐसा स्वीकार किया है। दीक्षानाम सोमचन्द्र रखा गया था, बाद में हेमचन्द्र नाम से प्रसिद्ध हुआ। काव्यानुशासन की प्रस्तावना से भी इसी निष्कर्ष की पुष्टि होती है।
उपर्युक्त विवेचन ते यह ज्ञात हो जाता है कि आचार्य हेमचन्द्र के गुरू आचार्य देवचन्द्रतरि थे। आचार्य हेमचन्द्र ने स्वयं त्रिषष्ठिशलाकापुरूषचरित" के दसवें पर्व की प्रशस्ति में अपने गुरू का स्पष्ट उल्लेख किया है
आचार्य हेमचन्द्र पृ. 13 ते उद्भूत
"To demonstrate his powers he set his arms in a blazing fire and his father found to his surprise the flashing arm tumed in to gold" - History of Classical Sanskrit Literature
- Krishanmacharior, Page 173-174 2. आचार्य हेमचन्द, पृ. 17 3 काव्यानुशासन - हेमचन्द्र, पो0 पारीय की अंग्रेजी प्रस्तावना