SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 38
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 26 ALPHABETIOAL INDEX. शत्रूषा यस्य, 141. न्यमायां विवाद, 99. शून्यत्वे मामिमिले, 343. बायकस्यारणा, 524. षोढाऽधिगमधर्मस्य, 74. सोपे विस्तरे, 506. संस्तवं कुलमात्पर्य, 97. मरभूमिः, 99. सत्ता च नाम, 499. मत्तलोकस्य, 445. सत्त्वप्रज्ञप्तित तु, 512. सप्तत्रिशचतुः, 296. समक्रमत्व बुद्धत्व, 531. समता भवशान्योः, 23. सर्वज्ञतानां तिहणां, 512. मर्वनो दमन, 179. सर्वत्र एप्ति, 345 सर्वसत्त्वमनो, 99. सर्वसत्त्वाग्रता, 80. सर्वाः सर्वाभिसारण, 512. सर्वाकारज्ञतामार्ग, 6. सर्वाकारजतायां, 115. सर्वाकारथतस्रो, 522. सर्वाकारां विशुद्धि, 521. सकाराभिसम्बोधो, 19. सर्वाकारां विशाहिं ये धर्माः, 523. सर्वानुशय, 411. स समाधि समापद्य, 502. सागवानाअवा, 77. सुवर्णवर्ण, 527. सुविभक्ताङ्गता, 531. खन्धादी, 418. स्तुतिः स्तोभ', 224. स्थाने गोत्रस्य, 489. स्थाने चाभिनिवेशे, 486. स्मृती चाधाय, 6. स्मृत्युपस्थान, 296. खधर्ममुप० 345. खप्न तदर्शिन, 519. खप्नान्तरेऽपि, 463. खनोपमत्वात्, 440. खप्नोपमेष धर्मेष, 519. खभावः श्रेष्ठता, 256. खय पापात्, 402. खय स्थितस्य, 173. स्वाभाविकः ससांभोगो, 26. हानिहौ, 430. हित सुख, 362. होनो रसः, 527. हेतौ मार्गे, 292. | हौरपत्राप्य, 96.
SR No.010445
Book TitlePrajnaparamitas 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGieuseppe Tucci
PublisherOriental Research Institute Vadodra
Publication Year1932
Total Pages677
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size36 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy