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________________ बेलगाम जिला। ____ नोट-मेराड या उसके पुत्र पृथ्वीवर्मा असलमें पवित्र मैलापतीथकी जै नकारेय जातिके आचार्य या गुरु थे (नोट मेलापतीर्थ कहां यह कारेय जाति कहां है, पता लगाना चाहिये)। राष्ट्रकूष्ट राजा कृष्ण द्वि० ने पृथ्वीवर्माको महासामन्त या महामंडलेश्वरकी उपाधि दी थी। सौन्दरतीमें जो शिलालेख सन ९८० (शाका ९०२) का पाया गया है वह लिखता है कि राजा शांतिवर्माने सौन्दत्तीमें एक जैन मंदिरके लिये भूमि प्रदान की थी। और उसीमें यह भी लेख है हरएक तेलकी चक्की चलानेवाला दीपावलीके उत्सवके लिये एक सेर तेल देगा। लक्ष्मीदेव प्रथमकी रानी चन्दलादेवी या चंद्रिकादेवी थी इसके नामको प्रगट करनेवाला एक शिलालेख सम्पगांवसे उत्तर पश्चिम ६ मील हन्निकरी पर है-यह लेख कहता है कि राहोंने अपनी राज्यधानी सौन्दत्तीसे वेणुग्राम या बेलगाममें बदली। मुख्य स्थान । (१) बेलगामशहर व किला-यहांका किला १०० एकड़ करीब भूमिमें है। इस किलेपर जब इंग्रेजोंने अधिकार किया तब वहां १० जैन कुटुम्ब रहते थे। इस किले में अब तीन जैन मंदिर हैं जो करीब १२०० सनके हैं नोट- इनमें से एक बहुत बढ़िया कारीगरीका है इसका हमने ता० २५ मई १९२३ को दर्शन किया है। छतोंपर कमलों के आकार व खंभोंमें बेलें बहुत अपूर्व हैं । इस मंदिरको कमलवस्ती कहते हैं। चौकमें ७२ जिन प्रतिमाएं छतके वहां हैं उनमें २४ पद्मासन २४ मंदिरोंके आकारोंमें हैं-यह चौंक १४ खम्भोंक
SR No.010444
Book TitlePrachin Jain Smaraka Mumbai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1982
Total Pages247
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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