SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 63
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ काठियावाड (सौराष्ट्रदेश)। [४५ नोट--यहां जैनियोंके बाईसवें तीर्थंकर श्री नेमिनाथजीने तप करके मोक्ष प्राप्त की है। श्री कृष्णके पुत्र प्रदुम्नकुमार संबुकुमार आदिने भी। इसके सिवाय बहुतसे और मुनियोंने। इसीलिये भारतके सब जैन लोग बडी भक्तिसे दर्शन पूजा करने आते हैं । दि० जैन शास्त्रोंमें इसका प्रमाण यह है: णेमिसामि पनण्णो सम्बुकुमारो तहेव अणिरुद्धो । वाहत्तरि कोडीओ उज्जते सत्तसया सिद्धा ॥ ४ ॥ (प्राकृत निर्वाणकांड ) भाषाश्री गिरनार शिषर विख्यात । कोड़ि यहत्तर अरु सौ सात । शंबुप्रद्युम्नकुमर दो भाय । अनुरुहादि नमो तसु पाय ॥ ( भगवतीदास कृत) यहां गढ़ गिरनारपर ३६ लेख हैं जो सब प्रायः सं. १२८८ के वस्तुपाल तेजपाल गंत्रियोंके हैं। नेमिनाथजी मंदिरके द्वारके दक्षिण हातेके पश्चिम एक छोटे मंदिरकी भीतपर दि. जैन लेख है । न० १२ लेखके पश्चिम शब्द हैं। "स० १५२२ श्री मूलसंघे श्रीहर्षकीर्ति, श्रीपद्मकीर्ति भुवनकीर्ति...." (२) जूनागढनगर-गिरनार और दातार पहाडीके नीचे प्राचीनता और ऐतिहासिक सम्बन्धमें भारतवर्ष में यह अपने समान दूसरेको नहीं रखता । अपरकोटमें बढ़िया बौद्धोंकी गुफाएं हैं । तमाम खाई और उसके निकट गुफाओं व उनके ध्वंश भागोंसे व्याप्त है। इसमें सबसे बढ़िया खापराकोडिया है जो पहले ३ खनका मठ का । देखो---
SR No.010444
Book TitlePrachin Jain Smaraka Mumbai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1982
Total Pages247
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy