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________________ गुजरातका इतिहास । [ २०७ यह बड़े विद्वान् थे । राजा इनका बहुत सन्मान करता था। इनकी बहुत प्रसिद्धि राजा कुमारपालके समयमें हुई थी । इस समय धारके राजा भोजकी विद्वन्मान्यता बहुत प्रसिद्ध थी । उसकी सभा में पंडितगण बैठते थे । राजा भोजका एक संस्कृत विद्यालय धार में था, जिसके खंभे धारकी मसजिदमें हैं । इनमें संस्कृत प्राकृत व्याकरणके ४०० सूत्र खुदे हुए हैं। इसी कारण और राजाओंने भी विद्याकी मान्यता की थी गुजरात, सांभर व अन्य प्रांतोंके राजा भी विद्वानोंकी कदर करते थे। अजमेर में जो अढ़ाई दिनका झोपड़ा है वह भी संस्कृत विद्यालय था उसके पाषाणोंपर पूर्ण नाटक अंकित मिला है। सिद्धराज के एक कवि श्रीपालने सहश्रलिंग झीलपर एक प्रशस्ति लिखी है । इसी समय हेमचंद्राचार्यने सिद्धम व्याकरण और हाय काव्य लिखा । दिगम्बर श्वेताम्बर बाद सभा - राजा सिद्धराजने एक बाद सभा बुलाई थी । करणाटकके एक दिगम्बर जैनाचार्य कुमा । दचंद्र करणावती या अहमदावाद में आए थे । तत्र श्वेताम्बर जैन आचार्य देवसूरि अरिष्टनेमिके जैन मंदिर में रहते थे। दोनोंकी वार्तालाप हुई फिर दिगम्बर जैन साधु अनहिलवाड़पाटन नग्नावस्थामें आए । सिद्धराजने उनका बहुत सन्मान किया क्योंकि वे उसकी माताके देशसे पधारे थे । सिद्धराजने हेमचंद्रसे कहा कि आप वाद करें। हेमचंद्रने कहा कि देवसूरिको वादके लिये बुलाना चाहिये | देवसूरि और कुमुदचंद्रका वाद सभामें हुआ । दिगंबरोंकी तरफसे कहा गया था कि स्त्री निर्वाण नहीं पासक्ती तथा वस्त्र सहित जैन निर्वाण नहीं पासक्ता । ये दोनों बातें राजाके श्वे ०
SR No.010444
Book TitlePrachin Jain Smaraka Mumbai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1982
Total Pages247
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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