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________________ गुजरातका इतिहास । [ १८७ यमें सुदर्शनझील फिर ठीक कीगई थी (सन् ४५७)। यह झील गिरनार पर्वतके पश्चिम भवनाथकी घाटीके पास है। ( B. R. A.S. XVIII ! कंधगुप्तके राज्यकी तारीग्वं गिरनार लेख पर १३६-१३७ हैं । काहोन गोरखपुरके ग्वभेमें १४१ हैं, इन्डो-खेड़ा ताम्रपत्र में १४६ है । शिक्कोंपर १४४, १४५, १४९ है। इसके पीछे गुप्तोंका प्रभाव घट गया। गुप्तवंशमें बुधगुप्त मन ४८५में हुआ। इसका नाम मागर जिलेके एगनक मंदिरके बभेमें है । इमका राज्य कालिंदी (जमना) और नर्वदाके मध्यमें था। तोगमन-मन ४९७ बुधगुप्तके पीछे ग्वालियरके मिक्कोंमें नाम है । इसका पुत्र मिहिरकुल था (: A t. 111) ___भानुगुप्त-मन ५१ . यह, मालवाके किसी भाग पर राज्य करता था। इसके वंशका राज्य हर्षवर्धन ( ६०७-६५० के ममय तक चलता रहा । हर्षचरितमें राज्यवईनका शत्रु मालवा देवगुप्त कहा गया है । पश्चिम भारतमें जब गुप्त गिरे तब गुप्तोंकी एक शाखा राजा नारगुप्त बालादित्यके नीचे मगधमें उठी थी। पुष्पमित्र जैन वंश-कंध गुप्तका लेख जो भिटोरीके स्तंभ है उसमें लिखित है कि इसने पुप्पमित्रको विनय किया। यह पुष्पमित्र सन ४५५ में था । यह वंश सन ७८ से ९३७ तक चलता रहा । राना कनिष्कके समयमें यह वंश बुलन्दशहरके पास बस गया था और अपनेको जैन धर्मानुयायी कहता था । ( देखो-Bhitari Ins, corp. Ius. I. HI.) गुप्त-स्कंधगुप्तके पीछे उसके भाई पुरुगुप्तने, फिर उसके
SR No.010444
Book TitlePrachin Jain Smaraka Mumbai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1982
Total Pages247
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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