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________________ कोल्हापुर जिला । [१५३ मील | ग्राम निकट पहाड़ीपर दो प्राचीन जैन मंदिर, इनमें श्री पार्श्वनाथकी मूर्तियें है जो श्री गिरीपार्श्वनाथ और झरी पाचनाथके नाममे प्रसिद्ध हैं। (१३) कुंभोज-बाहुबली पहाड-हाथकलंगड़ा प्टे से ५ मील | पहाड़ी ॥ मील ऊंची है, यहां बाहुबलि नामके दि० जैन मुनि होगए हैं, व बाहुबलि मुनिकी चरणपादुका हैं। इससे पर्वत प्रसिद्ध है । यहां १६ खंभोका जैन मंदिर है। (१४) स्तवनिधि-कोल्हापुरमे व चिकोड़ी प्टेशनसे करीब ३० मील | यहांपर प्राचीन जैन मंदिर हैं। पहाड़ी मुनियोंके ध्यानके योग्य है। कोल्हापूर शहरके जैन मंदिरमें जो शिलाहारी शिलालेख शाका १०६५ का है उसका भाव यह है । शुक्रवारपेटमें यह जैन मंदिर है। शिलालेख संस्कृत भाषा पुरानी कनड़ी लिपिमें है। शिलाहार बंगके महामंडलेश्वर विजयदियदेवने माघ सुदी १६ शाका १०६५ को एक खेत और १ मकान १२ हम्त आजिर गेखोला मिलेके हाविन हीरिलगे ग्राममेंमे वहीं स्थापित श्री पार्श्वनाथजीके जैन मंदिरमें अष्टद्रव्य पृजाके लिये दिया । इस मंदिरको मूलसंघ देशीयगण पुस्तक गच्छके अधिपति माघनंदि सिद्धांतदेवके शिप्य सामंत कामदेवके आधीनस्थ वासुदेवने बनवाया था। तथा उस दानसे क्षुल्लकपुरमें पवित्र रूपनारायणके जैन मंदिरकी मरम्मत भी वहांके पुनारीके हारा हो यह भी लेख है, यह दातार विजयादसदेव तगार नगरके राजा जातिगके पुत्र गोकुल उसके पुत्र मारसिंह उसके पुत्र गंधारदित्यदेवका पुत्र था।
SR No.010444
Book TitlePrachin Jain Smaraka Mumbai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1982
Total Pages247
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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