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________________ उत्तर कनड़ा जिला। [ १३१ यद्यपि समयके फेरसे ये बहुत नष्ट होगए हैं, परन्तु इनमें २३ वें और २४ वें तीर्थंकरोंकी मूर्तियां अभीतक ठीक हैं । बड़े सुन्दर कृष्ण पाषाणकी हैं। भटकलमें अभी तक १४ जैन मंदिर मौजूद हैं जो पंद्रहवीं शताब्दीमें प्रसिद्ध चन्नभैखदेवीके राज्यके समयसे हैं। भटकल-जरसप्पा और वनवासीमें बहुत लेख कनड़ी भाषामें पाए गए हैं:... मुख्य स्थान। (१) बनवासी ( बनवासी ) ग्राम तालु० सिरसी, बरदा नदीके तटपर, सिरसीसे. १४ मील । यह प्राचीनकालमें बड़े महत्वका स्थान था। यहां कादम्ब राजाओंकी राज्यधानी रह चुकी है। जो जैन मंदिर पश्चिमकी तरफ बड़ा है उसमें १२ शिलालेख दूसरी शताब्दीसे १७वीं शताब्दी तकके हैं। Ftolemy टोलमी ने इसका वर्णन किया है । सन् ई० से तीसरी शताब्दी पहले बौड पुस्तकोंमें भी इसका नाम आया है । बनवासी (१२०००) को तेरहवीं शताब्दीमें देवगिरि यादवोंने ले लिया । इसका प्राचीन नाम जयन्तीपुर था। पांचवीं शताब्दीमें कादम्ब वंशका राजा मयूरकर्मा बहुत प्रसिद्ध हुआ । उसने चालुक्य राजाओंसे मित्रता कर ली थी। सन् १०७५ में यह जिला भुवनैकमल्लके सेनापति उदयंदिसके आधीन था, उस समय विक्रमादित्यने १०७६ में उसपर अधिकार किया। इसने इस निलेको अपने भाई जयसिंहको दे दिया। उसने झगड़ा किया तब यह जिला वर्मदेवको दिया गया तथा ११५७ में कलचूरी लोगोंने चालुक्योंका विरोध किया तब चालुक्योंने अपना .
SR No.010444
Book TitlePrachin Jain Smaraka Mumbai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1982
Total Pages247
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
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