SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 100
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८४] मुंबईप्रान्तके प्राचीन जैन स्मारक । पहला जैन मंदिरकी बाई तरफ भीतमें एक पाषाण लगा है। इसके ऊपर मध्यमें श्री जिनेन्द्र पद्मासन हैं दाहनी तरफ गाय वछड़ा है बाई तरफ सूर्य चन्द्र है । इस लेखमें पुरानी कनड़ी भाषाकी ५३ लाइन हैं जिनमें सौंन्दत्ती और बेलगामके तीन राट्ट राजाओं द्वारा दिये हुए दानोंका वर्णन है । इसमें कथन है कि सुगंधवर्ति ( जो सौंदत्तीका प्राचीन नाम था ) में दो जैन मंदिरोंको प्रथम राह राजा पृथ्वी वर्मा प्रथम और शेन प्रथमने जो ७ वें राट्ट राजा थे, बनवाया और ६ या ७ भूमियोंका दान कुछ राट्ट राजाओंके द्वारा दिया हुआ है ऐसा कथन है । तथा एक दान १०९७ में पश्चिमी चालुक्य महाराजा विक्रमादित्य छठे ( त्रिभुवनमल्ल ) ने दिया ऐसा वर्णन है । इनमेंसे तीन दान जैन मंदिरोंको और चार दातारोंके गुरुओंको दिये गए हैं इनमेंसे दो में ता० ८७५ और १०९७ है। यह लेख यह भी बताता है कि पृथ्वीरामका स्वामी राजा राष्ट्रकूट महाराज कृष्ण थे (८७५ से ९११ ) तथा सुगन्धवति नगरीके निकट मल्हारी ( मलप्रभा ) नदी बहती है। इसी लेलसे यह भी प्रगट हुआ कि पृथ्वीवर्मा मेरडका पुत्र था। यह राजा गद्दीपर आनेके पहले पवित्र मुनि मैलपतीर्थका धार्मिक शिष्य कारय जातिमें था । इसने शाका ७९८ में मन्मथ संवत्सरमें यहां जैन मंदिर बनवाया और १८ निवर्त भूमि दान की। दूसरा शिला लेख एक पाषाणमें है जो इसी ही जैन मंदिरकी दाहनी भीतपर लगा है, इसके ऊपर मध्यमें एक पद्मासन निन है, यक्ष यक्षिणी चमर कररहे हैं । दाहनी तरफ गाय वछड़ा है, ऊपर सूर्य है तथा
SR No.010444
Book TitlePrachin Jain Smaraka Mumbai
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1982
Total Pages247
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size16 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy