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________________ मध्य प्रान्त | [ ४ (३) सिरपुर - वासिमसे उत्तरपश्चिम ११ मील । यह जैनियोंका पवित्र स्थान है | इम्पीरियल गजेटियर बरार सन् १९०९ में नीचे प्रकार कथनं S " है " यहां श्री अन्तरीक्ष पार्श्वनाथका मंदिर है जो दिगम्बर जैन जातिका है ( belongs to Digambor Jain Community ) इसमें एक लेख सन् १४०६ का है। इसमें अन्तरीक्ष पार्श्वनाथ नाम लिखा है। यह मंदिर इस लेखसे १०० वर्ष पहले निर्मापित हुआ था । यह कहावत है कि एलिचपुरके येल्लुक राजाने नदी तटपर इस मूर्तिको प्राप्त किया था और वह अपने नगरको ले, जा रहा था, परन्तु उसे पीछा नहीं देखना चाहिये था । सिरपुर के स्थानपर उसने पीछा फिरकर देख लिया तब मूर्ति नहीं चल सकी। वहीं बहुत वर्षोंतक यह मूर्ति वायुमें अटकी रही । अकोला जिलेका गजटियर जो सन १९११ के अनुमान मुद्रित हुआ होगा उसमें मिरपुर के सम्बन्धमें जो विशेष बात है वह यह है । जैन मंदिरके द्वारके मार्गके दोनों तरफ नग्न जैन मूर्तियां हैं तथा चौखटके ऊपर एक छोटी बैठे आसन जैन मूर्ति है । एलराजा मैनी था । इसको कोढ़का रोग था - वह एक सरोवरमें नहाने से अच्छा हो गया । राजाको स्वप्न आया कि प्रतिमा है । वह प्रतिमा लेकर उसी तरह चला तब प्रतिमा सिरपुरके वहां न चल सकी तब राजाने उसी के ऊपर हेमदपंथी मंदिर बनवाया । पीछे . दूसरा मंदिर बनवाया गया। यह मूर्ति एक कुनवी कुटुम्बके अधिकार में रही आई है. जिसको पावलकर कहते हैं । यह बात कही जाती है कि यह मूर्ति इस वर्तमान स्थिति में वैसाख सुदी ३ वि० ४ 1
SR No.010443
Book TitlePrachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages185
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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