SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 52
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २२] प्राचीन जैन सारक। यह विना गारेके फटे हुए पाषाणोंसे बना है और अन्य ध्वंश स्थानोंकी तरह यह भो शायद जैनियोंका ही कार्य है। यहां बहुत सुन्दर शिल्पकी जैन मृतियां हैं। डिन्डोरीसे ९ मीलपर भी दक्षिण और नौमीले १३ वीं शताब्दीके मध्यके जैन मंदिर हैं। (२) देवगांव-नर्बदा नदी और बुढ़नेरके संगनपर मांडलासे उत्तर पूर्व २० मील यहां भी प्राचीन मंदिर हैं। (३) रामनगर-यहां आठ राजाओंका राज्य होरहा है-यहां भी कुछ ध्वंश स्थान है। [५] सिवनी जिला इसकी चौहद्दी इस प्रकार है-उत्तर-नरसिंहपुर, जगलपुर, पूर्व-मांडला, बालाघाट और भंडारा, दक्षिण-नागपुर, पश्चिमछिंदवाड़ा-यहां ३२०६ वर्ग मील स्थान है। इतिहास-सिवनीमें एक ताम्रपत्र मिला है जिससे जाना जाता है कि शतपुरा पहाड़ीके मैदान पर वाकतक वंशके राजाओंकी एक शाखा तीसरी शताब्दीसे राज्य कर रही थी-उसमें वंश संस्थापकका नाम विंध्यशक्ति है-ऐसे ही लेख अनन्ताकी गुफाओंमें हैं। पुरातत्त्व-तालुका सिवनीके धनसोर स्थानपर बहुतसे जैन मंदिर हैं । सिबनीसे २८ मील आष्टामें वरघाटपर तीन मंदिर पाषाणके हैं। ऐसे ही लखनादोन पर हैं। कुरईके पास बीसापुरमें गोंद राजा भोपतकी विधवा सोना रानीका बनवाया हुआ पुराना मंदिर है । मुख्य स्थान ये हैं। (१) चावरी-तहसील सिवनी, यहांसे दक्षिण पश्चिम ६
SR No.010443
Book TitlePrachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages185
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy