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________________ १३६] । प्राचीन जैन स्मारक। थोड़े होंगे तोभी उस समयके वने जैन मंदिर श्वेताम्बरों द्वारा बनाए गए थे। कीर्तिस्तम्भ चौमुख मृतिको धारताहुआ एक महत्त्वशाली स्तम्भ है । जो पुराने खुदे हुए पाषाणोंका देर इस स्तम्भके नीचे है उसमें ऐसी चौमुख मूर्तिका भाग है कि जो इस स्तम्भके शिखर पर अच्छी तरह विराजित होगी (देखो चित्र १ चौमुख मूर्ति पृष्ठ ४४) इसको समवशरणके ऊपरी भागसे मुकाबला किया गया है। (देखो चित्र १८ B)-ऐसे स्तम्भ जिनको कीर्तिम्तम्भ कहते हैं व जो जैन मंदिरके सामने स्थापित किए जाते हैं उनमें चौमुख मूर्तिक उपर १ छतरी होती है। यदि इस कीर्तिस्तम्भका सम्बन्ध मूलमें किसी मंदिरसे होगा तो यह मंदिर शायद उस स्थानपर होगा जहां वर्तमानमें पूर्व ओर अब पापणका ढेर है। जो वेताम्बर जैन मंदिर अब इस स्तम्भके पास दक्षिण पूर्वमें है उसका सम्बन्ध इस स्तंभसे नहीं है, क्योंकि वह ३५० वर्ष पीछे बना था। इस मंदिरके शिखरके भीतर. देखनेसे माल्टम होता है कि इस शिखरके भीतरी भागमें जो खुदे हुए पाषाण हैं वे प्रगट करते हैं कि यहां पासने पहले कोई दूसरा मंदिर होगा। इस कीर्तिस्तम्भनी नरम्मत सारने सन् १९०६ में की थी जिसके लिये महाराणा उदयपुरने २२०००) खर्च किया । जीर्णोद्धारक पहले ऊपर तोरण न थे सो फिरसे वनादिये गए हैं। टट ४९ पर है कि डा० जी० आर० भंडारकरके कथनानुसार दक्षिण कालेज लाइब्रेरीमें एक प्रशस्ति है जिसको " श्री चित्रकूट दुर्ग महावीरप्रसाद प्रशस्ति" कहते हैं जिसने चारित्रगणिने वि०
SR No.010443
Book TitlePrachin Jain Smarak Madhyaprant Madhya Bharat Rajuputana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitalprasad
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1926
Total Pages185
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size7 MB
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